समाज पर कवितावां

औमतौर सूं किणी संगठित

समूह नै समाज केय दियौ जावै पण उणरौ विमर्श लांबौ अनै महताऊ है। अठै संकलित रचनावां समाज सबद रै औळै-दौळै रचियोड़ी है।

कविता105

काळ

मणि मधुकर

म्हूँ जनता हूँ

भगवती लाल व्यास

घर कठै है

अर्जुनदेव चारण

अणहद नाद

भगवती लाल व्यास

बंटवारो

भगवती लाल व्यास

थूं कद जीवती ही मां

अर्जुनदेव चारण

शमसाँण री कणेर

भगवती लाल व्यास

सातवौं फेरौ

अर्जुनदेव चारण

आग री ओळख

पारस अरोड़ा

चौपड़-पासा

मणि मधुकर

थारी काया

अर्जुनदेव चारण

पद्मणी

अर्जुनदेव चारण

गुवाड़ रो जायो

मोहम्मद सदीक

हूंणी

मणि मधुकर

अेलांन

मणि मधुकर

सती

अर्जुनदेव चारण

ओ रोळ राज रो डंडो...

विनोद सारस्वत

जद तूटै अंबर सूं तारौ

रेवतदान चारण कल्पित

आभै रै अधबीच

प्रकाशदान चारण

अन्तस उठ बोल्यो

मोहम्मद सदीक

आपणी लेखणी सूं

विमला भंडारी

थै जाणो हो

सांवर दइया

म्हैं नीं हारी

चंद्रशेखर अरोड़ा

बाकी हिसाब

पारस अरोड़ा

झूठौ बणज

प्रेमजी ‘प्रेम’

आखड़ी

अर्जुनदेव चारण

म्हूँ अछूत

मुकुट मणिराज

बाड़ अर गुलाब

गोरधन सिंह शेखावत

ब्रितांत

मणि मधुकर

देस

मोहन आलोक

बेटा

अशोक कुमार दवे

धीयां नै

सत्यप्रकाश जोशी

ओ कुण

मोहम्मद सदीक

अम्बा

अर्जुनदेव चारण

साटिया री छोरी सूं

गोरधन सिंह शेखावत

ऊंडी भखारियां

अर्जुनदेव चारण

अजै जूझणो पड़सी

मोहम्मद सदीक

ज़िन्दगी

भगवती लाल व्यास

सबद कोस

अर्जुनदेव चारण

कवी

सर्गेइ येसेनिन

अेक ठहर्‌योड़ी दोपरी

गोरधन सिंह शेखावत

जाजम रै खिलाफ

अर्जुनदेव चारण

बापू रौ बिलम

रेवतदान चारण कल्पित

पा’वणा

कल्याणसिंह राजावत

रेत अर लुगाई

प्रेमलता सोनी

दिवलौ

रघुराजसिंह हाड़ा

हित्या रौ उच्छब

अर्जुनदेव चारण