समाज पर दूहा

औमतौर सूं किणी संगठित

समूह नै समाज केय दियौ जावै पण उणरौ विमर्श लांबौ अनै महताऊ है। अठै संकलित रचनावां समाज सबद रै औळै-दौळै रचियोड़ी है।

दूहा2

चैत

रेवतदान चारण कल्पित

औ सांसा झालणा पड़ैला!

विनोद सारस्वत