समाज पर गीत

औमतौर सूं किणी संगठित

समूह नै समाज केय दियौ जावै पण उणरौ विमर्श लांबौ अनै महताऊ है। अठै संकलित रचनावां समाज सबद रै औळै-दौळै रचियोड़ी है।

गीत3

बटोई

किशन लाल वर्मा

ओळमो

मुकुट मणिराज

मन की बुझाऊं

मुकुट मणिराज