नदी पर कवितावां

नदियों और मानव का आदिम

संबंध रहा है। वस्तुतः सभ्यता-संस्कृति का आरंभिक विकास ही नदी-घाटियों में हुआ। नदियों की स्तुति में ऋचाएँ लिखी गईं। यहाँ प्रस्तुत चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है, जिनमें नदी की उपस्थिति और स्मृति संभव हुई है।

कविता33

परेम

अंजु कल्याणवत

काळ

किशन ‘प्रणय’

प्रीत रो अणहद नाद

मीनाक्षी आहुजा

जैसलमेर

चंद्रशेखर अरोड़ा

चम्बल का किनारा

किशन ‘प्रणय’

नदी नै समंदर

प्रदीप भट्ट

दीठ

प्रदीप भट्ट

खरो सांच

मदन गोपाल लढ़ा

अेक कवि री आयस

चन्द्र प्रकाश देवल

करम

बृज मोहन ‘तूफान’

सूखी नदी

रमेश मयंक

साची बात

आशा शर्मा

म्हैं

सन्तोष मायामोहन

मौत

रमेश मयंक

भूखमोचिनी

मदन गोपाल लढ़ा

कविता अर म्हैं

विजयसिंह नाहटा

आखर

अर्जुन देव चारण

पाणी

पुरुषोत्तम छंगाणी

नदी, नदी ही नीं है

वासु आचार्य

नदी अर मजल

कैलाश कबीर

ध्वनि परस

रामस्वरूप किसान

अबै जावूं

चन्द्र प्रकाश देवल

जै पद्मा

गौरीशंकर 'कमलेश'

विद्यालय

रचना शेखावत

काचा कनारा

किशन ‘प्रणय’

नदी

प्रदीप भट्ट

मूंडो दूधां धोयो

प्रेमजी ‘प्रेम’

बण सोची ही

सत्यदीप ‘अपनत्व’

अमूझणी भर्‌या दिन

भगवती लाल व्यास

नींद

थानेश्वर शर्मा

बारी आळी रात

मदन गोपाल लढ़ा

नदी

जगदीश गिरी