दुसमी पर कवितावां

शत्रु ऐसे अमित्र को

कहा जाता है जिसके साथ वैमनस्य का संबंध हो और जो हमारा अहित चाहता हो। आधुनिक विमर्शों में उन अवधारणाओं और प्रवृत्तियों की पहचान भी शत्रु के रूप में की गई है जो प्रत्यक्षतः या परोक्षतः आम जनमानस के हितों के प्रतिकूल सक्रिय हों। प्रस्तुत चयन में शत्रु और शत्रुता विषय का उपयोग कर वृहत संदर्भ-प्रसंग में प्रवेश करती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता5

डंकै री चोट

जयनारायण व्यास

सांचोड़ौ समर-वीर

संतोष शेखावत ‘बरड़वा’

बिरछ देवता

बाबूलाल शर्मा