धूप पर कवितावां

धूप अपनी उज्ज्वलता और

पीलेपन में कल्पनाओं को दृश्य सौंपती है। इतना भर ही नहीं, धूप-छाँव को कवि-लेखक-मनुष्य जीवन-प्रसंगों का रूपक मानते हैं और इसलिए क़तई आश्चर्यजनक नहीं कि भाषा विभिन्न प्रयोजनों से इनका उपयोग करना जानती रही है।

कविता25

माटी जद बात संभाळी

प्रमिला शंकर

जिद्दण रात (45)

सुंदर पारख

मनवार

हरीश बी. शर्मा

कूंट

हरीश बी. शर्मा

रट्ठ

राजूराम बिजारणियां

धरम री बहन

देवीलाल महिया

सूरज

जगदीश गिरी

आपांरै बिचाळै

चन्द्र प्रकाश देवल

सूरज

शंभुदान मेहडू

रात बावळी

राजू सारसर 'राज'

सबद : नौ

प्रमोद कुमार शर्मा

ताणियोड़ी भरत माथै

मीठेश निर्मोही

सूरज अर मजूर

पूनमचंद गोदारा

संझ्या : तीन चतराम

प्रेमजी ‘प्रेम’

तावड़ो रो थान

रेणुका व्यास 'नीलम'

आसान कोनी

सुमन पड़िहार

अडाणगत सुख

चेतन स्वामी

उगतो सूरज

उगमसिंह राजपुरोहित 'दिलीप'

बुढ़ळियौ सूरज

शंभुदान मेहडू