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नीति काव्य पर दूहा
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दूहा
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खल नृप तें का परिखते
उम्मेदराम बारहठ
गिरि-गिरि मानिक होत नहि
उम्मेदराम बारहठ
तिय घृत पात्र समान गिनि
उम्मेदराम बारहठ
लपक कुहक तरकी कहत
उम्मेदराम बारहठ
सज्जन सांच सनेह बिनि
उम्मेदराम बारहठ
जो सुपथ्य भोजन करे
उम्मेदराम बारहठ
पुत्रहीन सोचिय भवन
उम्मेदराम बारहठ
मीन, कुमुदनी, कैरवी
उम्मेदराम बारहठ
दुख काजे धन राखिये
उम्मेदराम बारहठ
उत्तम मध्यम अधम तिय
उम्मेदराम बारहठ
प्रथम मित्र फिरि सत्रु द्वै
उम्मेदराम बारहठ
बड़ कुल बाल विवाहिये
उम्मेदराम बारहठ
सेवक सन्मुख परखिये
उम्मेदराम बारहठ
नेह घटे हूं साधू कै
उम्मेदराम बारहठ
शुष्क मांस बूढ़ी तिया
उम्मेदराम बारहठ
खेत नदी के तीर पर
उम्मेदराम बारहठ
विद्या हत अभ्यास बिन
उम्मेदराम बारहठ
व्है कुनारि जा पुरुष कै
उम्मेदराम बारहठ
तुरत काज न करै सुबध
उम्मेदराम बारहठ
बालपनै रक्षिक पिता
उम्मेदराम बारहठ
करन्यास
ऊमरदान लालस
तिय दुष्टा अरु मित्र सठ
उम्मेदराम बारहठ
जीवन शून्य बिना पढ़े
उम्मेदराम बारहठ
धन संपत्ति संतान सुख
उम्मेदराम बारहठ
उद्यम में निंदा नहीं
उम्मेदराम बारहठ
देशकाल अरु पात्र लखि
उम्मेदराम बारहठ
दूजो आप समान नहि
उम्मेदराम बारहठ
जोबन धन संपति प्रभू
उम्मेदराम बारहठ
एकहि पूत सपूत वर
उम्मेदराम बारहठ
छिमा नरन के होत है
उम्मेदराम बारहठ
बाल तरुण अरु वृद्ध नर
उम्मेदराम बारहठ
कलह बीज उद्वेग मद
उम्मेदराम बारहठ
ज्ञान मरै धन बीगरै
उम्मेदराम बारहठ
देसकाल अरु पात्र बिनि
उम्मेदराम बारहठ
मन चिंतति कारिज करे
उम्मेदराम बारहठ
जो नर बुद्धि विहीन तिहिं
उम्मेदराम बारहठ
बैर करें निज जनन तें
उम्मेदराम बारहठ
गो गृह नृप दुज पितर स्वर
उम्मेदराम बारहठ
गहली बहू गिंवार
डेल्हजी
नरपति विद्यावान नर
उम्मेदराम बारहठ
हिरण मीन सज्जन पुरुष
उम्मेदराम बारहठ
जहां धेनि तहां जानि सुख
उम्मेदराम बारहठ
नर आचार न छाड़ियै
उम्मेदराम बारहठ
विन विचार तत्काल ही
उम्मेदराम बारहठ
नाग क्रुर अरु क्रुर खल
उम्मेदराम बारहठ
धन चाहें जो बिनज करि
उम्मेदराम बारहठ
दुर्लभ नारी पतिव्रता
उम्मेदराम बारहठ
जा कै गऊ न दूध कूं
उम्मेदराम बारहठ
कुल जानिय आचार तें
उम्मेदराम बारहठ
तरुवर इक फूल्यो फलो
उम्मेदराम बारहठ
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