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नीति काव्य पर सबद
सोरठा
छप्पय
सबद
काव्य खंड
कविता
सबद
6
लेखा देना रे धनी का
गरीबदास
मन रे तूँ स्याणा नहीं अयाणा रे
हरिदास निरंजनी
जिवड़ा जाय कहा तूँ रहसी वे
हरिदास निरंजनी
रे चित चिंता जिनि करे
बखना जी
मन मगन भया जब क्या गावै
गरीबदास
जब मन होवे माया का
फूलीबाई