की कमी के कारण लोग भूखों मरने लगें।
ओ फगत संजोग ई है कै भारू अखबार री खबर बणग्यौ। उण दिन अखबार रै बॉक्स में खबर छपी तौ केइयां री चोटी खड़ी होयगी। खबर न खबर रौ नांव। बस, ‘बिन पानी सब सून’ सिरैनांव तळै डब्बी मांन जग्यां में मंड्यौ हौ, “अखबारां में पांणी री कमी नैं लेय’र छप्या मजमूनां नैं
सेठ धींगड़मलजी रजाई में मूंडो लपेटतां-लपेटतां पसवाड़ो फेरियो नै सेठाणी सूं कह्यो—‘रणछोड़ा चौधरी रै अबके बजरी-कटवळ सेंग मिळायनै ओछा सूं ओछो बीस कळसी धान हुओ व्हैला। बीस कळसी! इण भाव में’ने पाई एक किणरी ई देवणी नहीं, साफ नकेवळो एड़ो करसो तो कलम रै हेटे
जाट रो बेटो, धन रो धायोड़ो, चौधरी बजै। मां-बाप री कमाई, जमीन, धन, बिना कमायो माल जवानी रै साथै हाथ लाग्यो। आछो घर, पक्को दरवाजो, चौधरी रै मोज होरी पण एक काणै मारै, चौधरी दादै रो नाम नहीं जाणै। बाप नै दादै रो नाम न पूछ्यो हुवै इसी बात नहीं। घणी-बार बाप
भूरी अब नाक ताई धापगी। रासू नैं एक’र भलै बुचकारय्यो—काँधै लगायो। समझायो—लाड़ी! आज दूध कोयनी। दिनगे पी लेई। अब सकर खाले, घी खाले, ले खाँड रो चूरमो करद्यूं। पण तीन बरस रो रामू स्याणो नी भोळो कूकतो-कूकतो को थम्योनीं। ‘दूध पीऊँला, हूँ तो दूध पीऊँला।” कै’र
अणचां हाथ में गूणियों लियां गाय नैं बुचकारी, पण वा लात फड़ाका करै। न तो टोगड़ियो झाल्यो अर न न्याणों ही दिरायो। टोगड़ियो बापड़ो उछळतो कूदतो थणां पड़ै अर गावड़ी ढूंढ मार’र परै फींकदे। कई ताळ तो अणचां उडीकी भळै छोरी मेवली नैं हेलो दे’र बोली-बाई! तूं इण
एक समै जेसलमेर रै भाटिपै जोर रो दुकाळ पड़ियो, बठै समैं में ही जद धान कम हुवै, फेरूँ काळ मैं तो अन्न मिलणो ही’ज कठै? सगळी मेदनी भूखों मरण लागी, अर देस-वास छोड़-छोड़ मऊ-माळवै जावण ने ढूकगी। एक भाटी सिरदार चोखै घराणे रो हुतो, उवै पैलड़ै साल ही ब्याव-करियो