सूर्य पर कवितावां

सूर्य धरती पर जीवन का

आधार है और प्राचीन समय से ही मानवीय आस्था का विषय रहा है। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया और उसकी स्तुति में श्लोक रचे गए। इस चयन में सूर्य को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता50

बसंत कै दिन

प्रेमजी ‘प्रेम’

म्हारै घरां सूरज कद उगसी?

श्री कृष्ण 'जुगनू'

हाइकू

शिव शर्मा 'विश्वासु'

चाँद अर सूरज

निशा आर्य

अस्यां थोड़ी ई होवै छै

हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'

बिसूंजै सूरज

राजेश कुमार व्यास

भोर

सांवर दइया

जिद्दण रात (45)

सुंदर पारख

चाँद मामो

हरीश हैरी

दबी चीखाँ अर बरसतो पाणी

गौरीशंकर 'कमलेश'

सिंदूरी सिन्झ्या

प्रभुदयाल मोठसरा

सूरज

जगदीश गिरी

ऊपरमाळ

मोहन पुरी

तुरपाई करती लुगाई

मदन गोपाल लढ़ा

अपणायत

मीठेश निर्मोही

म्हारो काळजो

हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

आपांरै बिचाळै

चन्द्र प्रकाश देवल

अेक बीजै सूं

कमल रंगा

आम आदमी

हरीश बी. शर्मा

खेलकणां थोड़ी ई छै

हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'

राड़ भोभर बणावै

राजेश कुमार व्यास

सूरज मरकरी

हरीश हैरी

मिनख री छायां

त्रिभुवन

सबद : नौ

प्रमोद कुमार शर्मा

जूण रा इग्यारा चितराम

सुरेन्द्र सुन्दरम

बोलै सरणाटो

हरीश भादानी

संकरांत

कृष्णगोपाल शर्मा

जांवता हा

सत्यदीप ‘अपनत्व’

ताणियोड़ी भरत माथै

मीठेश निर्मोही

बण सोची ही

सत्यदीप ‘अपनत्व’

सीख

कृष्ण बृहस्पति

रेत रो रुदन

जनकराज पारीक

कीं नान्ही कवितावां (क्षणिका)

घनश्याम नाथ कच्छावा

संझ्या : तीन चतराम

प्रेमजी ‘प्रेम’

आसान कोनी

सुमन पड़िहार

अडाणगत सुख

चेतन स्वामी

अकारथ

मदनमोहन पड़िहार

सोनै रो सूरज ऊगैलो

रामदेव आचार्य

जीवण जातरा

अंजु कल्याणवत

है ई कोनीं कोई

ओम पुरोहित ‘कागद’