
दूहा
राजस्थानी भासा रै मांय वीर अर दानी पुरूसां खातर घणकरां दूहा लिख्या गया। ओ मात्रिक छंद है। दूहे रै पैले अर तीजे चरण में तेरह अर दूजे अर चौथे चरण में इग्यारा मात्रावां हुवै, इण साथै सोरठे छंद रो उलटो हुवै।
राजस्थानी भासा रै मांय वीर अर दानी पुरूसां खातर घणकरां दूहा लिख्या गया। ओ मात्रिक छंद है। दूहे रै पैले अर तीजे चरण में तेरह अर दूजे अर चौथे चरण में इग्यारा मात्रावां हुवै, इण साथै सोरठे छंद रो उलटो हुवै।
ठावा कवि-गद्यकार। 'नुगरे रा पद' संग्रै सारू खास पिछाण। केंद्रीय साहित्य अकादमी रो सिरै पुरस्कार।
आचार्य भिक्षु जैन तेरापंथ धर्मसंघ रा संस्थापक अर पैला आचार्य हा। भिक्षु री रचनावां जैन धार्मिक शिक्षा अर तेरापंथ रा आचार विचार सूं सम्बंधित।
जोधपुर शासक राव मालदेव रा समकालीन अर राज आश्रित कवि। प्राकृत, संस्कृत अर डिंगल रा ज्ञाता। 'उमादे भटियाणी रा कवित्त' अर 'बाघजी रा दूहा' जैड़ी ठावकी रचनावां खातर चावा।
अलवर महाराजा बख्तावर सिंह रा आश्रित कवि। डिंगल व पिंगल दोन्यू धारावां में समान रूप सूं काव्य सिरजण। 'वाणी भूषण', 'राजनीती चाणक्य', 'अवध पच्चीसी', 'मिथिला पच्चीसी', 'जनक शतक' आद रचनावां अर 'बिहारी सतसई' व 'कविप्रिया' रा टीकाकार रै रूप में चावा।
जाम्भाणी साहित्य रचैताओं में खास गिणावणजोग नांव। 'प्रहलाद चरित', 'विष्णु चरित', 'कका सैंतीसी', 'लूर' आद चावी रचनावां।
जोधपुर महाराजा अभयसिंह जी रा प्रमुख दरबारी कवि। 'सूरज प्रकास' नांव री महताऊ रचना रा रचनाकार।
चावा कवि-लेखक। 'माटी री महक' कथा संग्रै माथै केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार।
राजस्थान रा सुप्रसिद्ध लोककाव्य 'ढोला मारू रा दूहा' रा रचयिता। जन्म-काल, स्थान, वंश आद रै विषय में जाणकारी रो अभाव।
आधुनिक काल रा शुरुआती कवि। डिंगल- पिंगल में समान रूप सूं लेखन। 'दुर्गादास चरित्र', 'प्रताप चरित्र' आद खास रचनावां।
जोधपुर नरेश गजसिंह जी रा किरपा पात्र कवि। 'गजगुण रूपक-बंध' अर 'निसांणी विवेक वारता' नांव री महताऊ रचनावां।
जांभाणी साहित्य परंपरा रा प्रमुख कवि। भगती अर नीति सूं संबंधित पदों रा रचैता।
रामस्नेही संत दरियावजी (रैण शाखा) रा प्रमुख शिष्य। भक्ति, नीति अर गुरु महिमा सूं संबंधित लगभग चार हजार पदां रा रचैता।
पंदरवी सदी रा जांभाणी साहित्य रा चावा कवि। भगती,नीति अर ज्ञान संबंधित पद मिळै।
मेवाड़ री धरती सूं सम्बंधित प्रमुख डिंगल कवि। महाराणा प्रताप रा छोटा भाई शक्तिसिंह रे चरित्र माथे 'सगत रासो' नांव सूं चावे ग्रन्थ री रचना करी। रचनाकाल सतारवीं सदी रे लगैटगै।
सिरैनांव कवि। 'लू' अर 'बादळी' जेड़ी राजस्थानी साहित्य री कालजयी पोथियाँ रा सिरजक।
अठारवीं सदी रा चावा डिंगल कवि अर विद्वान। 'सोढायण' अर 'हरिजस-मोख्यार्थी' जैड़ी घणी ठावकी रचनावां रा सिरजक।
हाड़ौती अंचल रा चावा लिखारा। राजस्थानी गीत अर दोहां में लगोलग काम। अनुवाद में ई सांवठी भागीदारी ।
मेवाड़ रा सिरै भगत कवि अर योग साधक। भगती, मीमांसा, योगसार आद रा छंद, पद अर कवित्त खातर चावा।
सतरवीं सदी रा डिंगल कवि। जलम भौम अर समै विषयक जाणकारी रो अभाव। फुटकर डिंगल गीतां खातर चावा।
उदार अर निडर कवि। पिता मार शासक बखतसिंह री निंदा में 'पितामार प्रकास' नांव री रचना लिखी। 'वर्णरक्षा विकार' अर 'चूक पच्चीसी' नांव री अन्य रचनांवा भी मिळै।
मेवाड़ रा राजकवि अर वीर रस रा सिरै कवि रूप चावा। वीर सतसई, हाड़ी शतक, झाला मान शतक आद घण महताउ रचनावां रा सिरजक।
मारवाड़ सूं संबंधित प्रमुख दादूपंथी संत कवि। 'नारायण वाणी' नांव री चावी रचना।
आधुनिक काल रा डिंगल कवि। हल्दीघाटी युद्ध रा वीर झाला मानसिंह रै पराक्रम ने आधार बनाय'र 'मर्द मकवांण' नांव रै खंड-काव्य री रचना लिखी।
'पीथल' नांव सूं चावा। बीकानेर महाराजा रायसिंह रा छोटा भाई अर राजस्थानी रा सिरै कवि। वीर, सिणगार अर भगती आद सगळी विधावां में सिद्धहस्त।
विश्नोई पंथ रा सिरै कवि, आत्मज्ञानी, साहित प्रेमी अर सिध्द पुरुष। खुद री कवातावां रै अलावा पुराणा संत कवियां री रचनावां ने आपरी लेखनी सू उकेर'र सहेजी।
किशनगढ़ महाराजा राजसिंह री राणी। मूल नांव बृजकुँवारी। कृष्ण भक्ति में आस्था रै पांण 'भागवत' रो राजस्थानी में छन्दोबद्ध अनुवाद करियो। अन्य रचनावां भी मिळै।
राजस्थानी कविता-जातरा रा सिरैनांव कवि। 'अणहदनाद' कविता संग्रै सारू केंद्रीय साहित्य अकादमी रो सिरै पुरस्कार।
नूवी पीढ़ी रा कवि। 'इण धरती रै ऊजळ आंगण' कविता संग्रै माथे केन्द्रीय साहित्य अकादमी रौ युवा पुरस्कार।
राजस्थान रा राम भक्त संत जिका राजस्थानी री पैली रामायण लिखी। इण रौ सम्बंध गुरु जांभोजी रै 'विश्नोई पंथ' सूं है।
जोधपुर रा शासक। काव्य रसिक अर परोपकारी राजा रै रूप में चावा। 'गज उद्धार' नांव रै भगती ग्रंथ रा रचैता।
ख्यात कवि अर समाजवादी। जनकवि रै रूप में पिछाण। 'इंकलाब री आंधी' अर 'लिछमी' कविता उलेखणजोग।
'रंगरेलो बीठू' रै नांव सूं चावा। आपरी रचनावां में धाट अर जैसाणा छैतर री अबखायां ने उकेरी।
'राजरूपक' जेड़ै ऐतिहासिक महत्त्व अर ऊंचे दरजे रा काव्य ग्रंथ रा रचैता। कच्छ-भुज पाठशाला सूं काव्य-शास्त्र री भणाई करियोड़ा। डिंगल अर पिंगल दोन्यू धारावां रा पारंगत कवि।
गागरौन रा शासक अचलदास खिची रा राजकवि। 'अचलदास खिची री वचनिका' जैड़ी महताऊ रचना रो सिरजण जिणमें अचलदास अर मांडू रा सुल्तान रै बीचे होयोड़ै युद्ध रो ओजस्वी वरणाव। वचनिका शैली री रचनावां में अचलदास खिची री वचनिका भाव, भाषा अर मौलिकता रै पांण राजस्थानी साहित्य में 'मील रो पत्थर' मानिजै।
अलवर शासक मंगलसिंह रा आश्रित कवि। खड़ी बोली में अलवर रो इतिहास लिख्यो। 'वृन्दावन शतक' अर 'अलवर री खट रितु झमाल' आद चावी रचनावां।
गुरु जाम्भोजी री परंपरा रा संत वील्होजी रै सात महताऊ शिष्यां में ज्ञान विद्या में सैं सूं निपुण। राजस्थानी लोगां रै सामाजिक जीवण अर संस्कृति रो रोचक बखाण इणां री रचनावां में देखण ने मिळै।
राजस्थानी संत साहित्य रा उजळा रत्न, मेवात क्षेत्र रा ख्यात संत कवि अर 'चरणदासी संप्रदाय' रा प्रवर्तक। सगुण अर निर्गुण दोनूं तरै रे ब्रह्म रा उपासक। साहित्य में भी निर्गुण उपासना सागै सगुण साधना री झलक निंगै आवै।
'रामस्नेही संप्रदाय' री रैण शाखा रा प्रवर्तक। घणकरी रचनावां निर्गुण निराकार राम री साधना अर गुरु महिमा सूं सम्बंधित; साथै ही आत्मसाक्षात्कार जनित अनुभवां ने साखीयों अर पदों में व्यक्त करिया है।
जलम नाम प्रताप सिंह। खीची राजवंश सू सम्बंधित अर गागरौन रा शासक। रामानंद जी सूं दीक्षा लेयर राजस्थान मांय निर्गुण भक्ति परंपरा री शुरुआत करी। दरजी समुदाय रा आराध्य रे रूप में पूजीजे।
दादूपंथी लालदासजी सूं दीक्षित, समाज सेवी अर संत कवि। रचनावां में घणकरी निर्गुण भक्ति रा पद अर वाणियाँ।
दादूजी रा शिष्य अर निर्गुण संत कवियों में सैं सूं ज्यादा शास्त्रज्ञानी व काव्य कला निपुण संत कवि। योग अर अद्वैत वेदांत रा समर्थक। काव्य रीतियों सूं आछी तरै परिचित रस सिद्ध कवि।
बनेड़ा (मेवाड़) रा शासक। कवि हृदय अर संगीत मर्मज्ञ। 'सुर-तरंग' नाम रा प्रमुख संगीत ग्रन्थ रा रचैता।
बूंदी रा राजकवि। 'वीररसावतार' रे रूप में चावा। डिंगल में ओज सूं ओतप्रोत 'वीर सतसई' अर पिंगल में 'वंश भास्कर' जैड़े वृहद ग्रंथ रा रचनाकार। 'राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी' रो सिरै पुरस्कार इणां रे नांव माथै देइजै।
'निरंजनी संप्रदाय' रा चावा संत कवि। भगती, नीति, अध्यात्म अर गुरु महिमा सूं संबंधित रचनावां।
रामस्नेही संत संप्रदाय रै महात्मा रामचरण जी रा प्रमुख शिष्य। रचना संसार घणो लूंठो, 'अणभै बाणी' नाम सूं संकलित-प्रकाशित।
'निरंजनी संप्रदाय' सूं संबंधित अठारवीं सदी रा संत कवि। गुरु कीरत अर भगति भाव रा पदां खातर चावा।
'रामस्नेही संप्रदाय' री शाहपुरा शाखा रा प्रवर्तक। मूरति पूजा रा विरोधी। साखी, सवैया, चंद्रायणा, झूलणा, कवित्त, कुंडलियां, रेखता आद छन्दां में भगती, नीति अर अध्यात्म रा पद रचिया।
डिंगल, पिंगल, संस्कृत रा प्रकाण्ड पंडित अर वेदान्त रा प्रखर जाणकार। 'पाण्डव यशेंदु चन्द्रिका' नांव री चावी रचना जो कि राजस्थानी महाभारत कहिजै।
उत्तर मध्यकाल रा चावा संत कवि। सूफ़ी मत अर वेदांत सूं प्रभावित। काव्य में अफंड, आडंबर, धेख आद माथै प्रहार रै साथै सांप्रदायिक सद्भावना रौ सुभग संदेश।
गत सदी रा सिद्ध, अनुभवी, ज्ञानी-ध्यानी अर पूगता संत कवि। गुरु जांभोजी रै जीवन अर विश्नोई पंथ रै इतिहास पर आधारित महताऊ आख्यान काव्य 'जम्भ सार' रा सिरजक।
मध्यकालीन डिंगल कवियां री पांत में आगीवाण नाम। भाषा प्रांजल डिंगल। 'जालंधर पुराण' अर 'भृंगी पुराण' नांव री दो प्रमुख रचनावां मिलै।
निरंजनी संप्रदाय रा संस्थापक। डकैतपणौ छोड़'र संत बणिया इण कारण कलियुग रा वाल्मिकी बाजै। घणकरा भजन अर पदां री रचना भगती, नीति, चेतावणी अर महात्म्य सूं संबंधित।