नाथूसिंह महियारिया
मेवाड़ रा राजकवि अर वीर रस रा सिरै कवि रूप चावा। वीर सतसई, हाड़ी शतक, झाला मान शतक आद घण महताउ रचनावां रा सिरजक।
मेवाड़ रा राजकवि अर वीर रस रा सिरै कवि रूप चावा। वीर सतसई, हाड़ी शतक, झाला मान शतक आद घण महताउ रचनावां रा सिरजक।
बाप पड़यौ् तिण ठौड़ हूँ
घण तोपां जागै नहीं
हणवँत गिर नहँ तोकता
हेली धव चढिया हमैं
कै तौ धव रण जीतिया
कंत न मावै कवच में
कटै न को दिन काटियां
कायर नूं लानत दियै
खग तौ अरियां खोसली
खग-कूंची जादू करै
नीला री खुरताळ पर
नित्त जगावै पीव नूँ
पिउ केसरियाँ पट किया
रहत नपूती तौ इतौ
राज करावै खाग ही
रण चढ़िया पट पहरियां
संग बळ जावै नारियां
सुत मरियौ हित देस रै
वा दिस सखी! सुहावणी
वे रण में विरदावता