साहबराम राहड़
गत सदी रा सिद्ध, अनुभवी, ज्ञानी-ध्यानी अर पूगता संत कवि। गुरु जांभोजी रै जीवन अर विश्नोई पंथ रै इतिहास पर आधारित महताऊ आख्यान काव्य 'जम्भ सार' रा सिरजक।
गत सदी रा सिद्ध, अनुभवी, ज्ञानी-ध्यानी अर पूगता संत कवि। गुरु जांभोजी रै जीवन अर विश्नोई पंथ रै इतिहास पर आधारित महताऊ आख्यान काव्य 'जम्भ सार' रा सिरजक।
अजर काम अरु क्रोध हैं
ओउम विष्णु विष्णु जपते रहो
बाचा निश दिन बोलिये
बाहर निकल काम कर
बारढ़ कूं चल बाहरो
भांग तमाखू छोतरा
छेरि भेडी आदि को
चोरी निंदा झूंठ को
दान दीया सैंसो कहै
दान कुपातां दीजियै
दत्तचित्त से होम कर
दोनों काल संध्या करै
गांवां मांही जे बड़ा
इनके खंडन की दवा
इनसे अधिक जूं बैल है
जीव दया नित पालणी
खड़ो जु खिड़की पाकड़ै
मास एक सूतक कहूं
नांव लियौ जिन सब कियो
पानी पी तू छानकर
पंथ सोई जो हर पुर जहै
प्रात: काल उठाणों
समिधा लीजै देखकर
संस्कार से रहित जन
सांयकाल में जायके
शुष्क बाद नहीं कीजिये
श्वेताम्बर धारण करै
सुने बहुत उपवास में
तिसके हाथ का अन्न जल
वन में बसती होय रही
विद्या पढ़िये लोक हित
व्रत अमावस के किये