दादूदयाल
राजस्थान में निर्गुण भगती धारा रा प्रमुख संत कवि। नरैना, जयपुर में गादी थापित कर'र आपरै नांव माथे दादू पंथ चलायो। नांव सुमिरण, समर्पण अर सर्व धर्म समभाव सूं सम्बंधित पदां खातर चावा।
राजस्थान में निर्गुण भगती धारा रा प्रमुख संत कवि। नरैना, जयपुर में गादी थापित कर'र आपरै नांव माथे दादू पंथ चलायो। नांव सुमिरण, समर्पण अर सर्व धर्म समभाव सूं सम्बंधित पदां खातर चावा।
आदि शब्द ओंकार है
बाहर दादू भेष बिन
दादू भाडा देह का
दादू केई दौड़े द्वारिका
दादू राम न छाडिये
दादू टूका सहज का
दादू, बहु रूपी मन तब लगै
दादू, कोई काहू जीव की
दादू, नाहर सिंह सियाल सब
गंगा यमुना सरस्वती
हीरा मन पर राखिये
कोरा कलश अवाह का
माया के रंग जे गये
माया सांपिणी सब डसै
माया सौं मन रत भया
निरंजन निराकार है