Anjas

दादूदयाल

  • 1544-1603
  • Dhundhar

राजस्थान में निर्गुण भगती धारा रा प्रमुख संत कवि। नरैना, जयपुर में गादी थापित कर'र आपरै नांव माथे दादू पंथ चलायो। नांव सुमिरण, समर्पण अर सर्व धर्म समभाव सूं सम्बंधित पदां खातर चावा।

दादूदयाल रौ परिचय

जन्म: अहमदाबाद,भारत

निधन: नरैना,भारत

राजस्थान रौ जन-जीवन भक्तिरस सूं रसाळ रह्यौ है अर अठा रै सन्तकाव्य री परंपरा में महात्मा दादूदयाल जी रौ घणो चावौ नांव है। दादू रो जलम समै वि.सं. 1601 में मान्यो जावे, वे गुजरात रे अहमदाबाद में जलम लेयर राजस्थान नें आपरी कर्मभूमि बणाई। दादूदयाल जी उत्तर भारत रै मांय कबीरदास जी रै पछै सबसूं सशक्त अर प्रभावी संत हुया। दादूदयाल जी एक पंहुच्यौडा़ योगी, सिद्धहस्त कवि अर जागरूक समाज सुधारक हा। आपरी बाणी में मधुरता, व्यवहार में विनम्रता अर उपदेश आत्मानुभूति संपन्न हा। दया जैडा़ मानवीय मूल्यां रौ भाव तौ आपरै रग-रग में  भरयौ पड़्यौ हो।
आपरी बाणी री हस्तलिखित अर प्रकाशित प्रतियां बड़ी संख्या में देखण नै मिले, जिणां रौ अध्ययन कर आपां दादूजी रा भाव, विचार अर सिद्धांतां री जाणकारी ले सकां। चिंतन री  झीणी दीठ अर भगति साधना रौ मणिकांचन मेळ आपरी रचनांवां में हुयौ।
अधियात्म, दरसन, भगति अर नीति संबंधी उणांरी रचनांवां राजस्थानी भासा अर साहित्य री हेमाणी है। जैपुर जिले रै सांभर कसबै में दादूदयाल जी सबसूं पहला 'परब्रह्म' संप्रदाय री थापना करी। दादूदयाल जी रै परलोक गमन रै पछै इण संप्रदाय रौ नांव "दादू पंथ" (दादू संप्रदाय) रे नांव सूं चावौ हुयौ। मान्यौ जावै है कि सुरुआत मांय दादूदयाल जी रै 152 सिस्य हा। जिण में सूं 100 सिस्य तो सिर्फ भगवान रा भजन कीर्तन ही करता हा अर बाकि 52 सिस्य भगवान रा भजन कीर्तन करणै रै सागै ही लोक अर समाज में ज्ञान रौ प्रचार प्रसार भी करता। दादूदयाल जी रा 52 सिस्य बावन थांभां रै नांव सूं चावा हा।
दादू पंथ रा 52 थांभा आज भी राजस्थान,पंजाब अर हरियाणा में है। दादूदयाल जी री फतेहपुर सीकरी में मुगल बादशाह अकबर सूं भेंट हुयी। जिण पछै आप भगति रौ घणौ प्रचार प्रसार कियौ।
दादूदयाल जी देसी राजस्थानी भासा में घणै सरल सबदां में आपरा उपदेस अर प्रवचन दिया। दादूदयाल जी ईश्वर भगति रो सही मारग दिखावण सारू गुरु नै घणौ महत्व दियौ।
दादूदयाल जी रै परलोक सिधारणै रै पछै दादू पंथ पाँच उपसम्प्रदाय मांय बटं गियौ -

1.खालसा
2.विरक्त तपस्वी
3.उतराधें (स्थानधारी)
4.खाकी
5.नागा
इण सगळा उप-सम्प्रदायां मांय दादू दयाल जी रौ आज भी घणौ मान -सम्मान अर विसवास है। दादूदयाल जी री याद में एक बरस में दो बार मेळो भरीजै। जिण में सूं एक नराणे में प्रति वर्ष फाल्गुन सुदी पाँचम सूं लेय'र ईग्यारस तक अर दूजो मेळौ भैराणे में फाल्गुन बदी तीज सूं लेय'र अगली चांनणां पख री तीज तक भरिजै। इण मेळा में सगळा उप-सम्प्रदायां रा संत महात्मा भाग लेवै।
जेठ वदी अष्टमी शनिवार संवत् 1660 (1603 ई.) रै दिन दादूदयाल जी परलोक सिधार गिया। दादूदयाल जी आपरी पंचभौतिक देह नराणा गाँव में छोड़ी। उठै ‘दादू-द्वारा’ बणियोड़ो है। दादूदयाल जी री  इच्छानुसार उणां रै पंचभौतिक सरीर नै भैराना री पहाड़ी रै उपरलै किनारै एक ग़ुफ़ा मांय समाधि दी। आ पहाड़ी आजकल  ‘दादू खोळ’  रै नांव सूं चावी है।
दादूदयाल जी रै विचारां मुजब अच्छा लोगां री संगति, भगवान रौ नांव सुमरण, अहंकार त्याग, संयम अर बिना कोई लाग-लपट अर डर सूं भगवान री पूजा उपासना ही इणं संसार रा साचा साधन है। दादूदयाल जी समाज में फैल्योड़ा आडम्बर, पाखंड अर सामाजिक भेदभाव जैड़ी कई सारी बुराइयां रौ विरोध कियौ अर उणां नै समाज सूं बाहर निकाळण री पूरी कोसिस करी। आदमी नै आपरै जीवन में सादगी अर सफलता राखतां थकां किण रै भी सागै छळ -कपट अर धोखौ नहीं करणै री बात माथे विशेष जोर दियौ। सरल लोक भासा अर विचारां रै खातिर ही दादूदयाल जी राजस्थान रा कबीर नांव सूं भी जाण्यां जावै है।