ईसरदास बारहठ
'ईसरा-परमेसरा' रे विरुद सूं विख्यात। डिंगल रा सिरै भगत कवियों में पैलो नांव। 'देवियाण', 'हरिरस', 'निंदा-स्तुति', 'गुण भागवत हंस' जिसी ठावकी भगतिपरक रचनावां सागै ही 'हालां-झालां रा कुंडलिया' जिसी ऊंचे दरजे री वीर रस री रचना रा भी सिरजक।
'ईसरा-परमेसरा' रे विरुद सूं विख्यात। डिंगल रा सिरै भगत कवियों में पैलो नांव। 'देवियाण', 'हरिरस', 'निंदा-स्तुति', 'गुण भागवत हंस' जिसी ठावकी भगतिपरक रचनावां सागै ही 'हालां-झालां रा कुंडलिया' जिसी ऊंचे दरजे री वीर रस री रचना रा भी सिरजक।
आपै ही जाणावसी
अरक जसौ जगि आथमै
बैनाणी ढीलौ घड़ै मो कंथ तणौ सनाह
सेल घमोड़ा किम सह्या किम सह्यिा गज दंत
चढ़ि पोरिस वह सोह
धीरा धीरा ठाकुराँ गुम्मर कियाँ म जाह
एकौ लाखाँ आंगमैं सीह कही जै सोय
फेरा लेतै फिर अफिर फेरी घड़ अणफेर
फिरि फिरि झटका
गढ़वी गांगौ गाविजै
गैदंतौ पाड़ा खुरौ
घोड़ाँ हींस न भल्लिया पिय नींदड़ी निवारि
घुड़ला रुधिर झिकाळिया
ग्रीझणि काँइ उतावळि हय पलाणताँ धीर
ग्रीझणि काँइ उतावळी हय पलाणताँ धीर
ग्रीझणियाँ रतनाळियाँ
हालाँ झालाँ होवसी सीहाँ लत्थौबत्थ
हे पणिहारी बापड़ी जहरी सूँ वर जाय
हेक पराया जव चरौ
हूँ बलिहारी साथियाँ
जसवँत गुरड़ न उड्डही ताळी त्राजड़ तणेह
कळपतरू ऊखलि पड़ै
काळो मंजीठी कियाँ नईणै नींदालुद्ध
केहरि छोटो बहुत
केहरि केस भमंग-मणि सरणाई सुहड़ाँह
किसन तणौ साम्हौ
लै ठाकुर वित आपणौ
ल्यावै लोड़ि पराइयाँ नहँ दै आपणियाँह
ल्यावै लोड़ि पराइयाँ नहँ दै आपणियाँह
मैं परणंती परखियौ
मैं परणंती परखियौ सूरति पाक सनाह
माल्हंतौ घरि आंगणै सखी सहेली ग्रामि
मतिवाळा धूमै नहीं नहँ घायल बरड़ाय
मूँछाँ बाय फुरूकिया
रिमाँ माण मूकै नहीं
रिण सोहा रिण सूरमा
सादूळौ आपा समौ वियौ न कोय गिणंत
सखी अमीणा कंत रौ औ इक बड़ौ सुभाव
सांई एहा भीचड़ा मोलि महूँगे वासि
सीहणि हेकौ सीह जणि छापरि मंडै आळि
सींगाळौ अवखल्लणौ जिण कुळ हेक न थाय
सिणगारी सन्नाह सूँ विसकामणि वरियाम
सिंघ सरस रायसिंघ
थोड़ा बोलौ घण सहौ नहचै जो नेठाह
उलटौ काय न मार
उठी अचूंका बोलणा नारि पयपै नाह
ऊठि अढंगा बोलणा कामणि आखै कंत