फिरि फिरि झटका जै सहै हाका बाजंताँह।

त्याँ घरि हंदी बंदड़ी घरणी कापुरसाँह॥

कापुरसाँ घरणी करतार रख्खै करै।

मरै नहँ पिसण खग निबळ आपै मरै॥

अभँग जसवंत जुध काम कजि आहुरी।

फिरि अफिरि फौंज करि सुयण झटका फिरी॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर