केहरि छोटो बहुत गुण मोड़ै गयँदां माण।

लोहड़ बड़ाई की करै नरां नखत परमाण॥

नखत परमाण बाखाण वाधौ नरै।

आवगौ झूँझ रौ भार भुजि आपरै॥

मेटणौ भीड़ भुंजि गयंद री मोटियाँ।

छावड़ बळ हतै कळाइयाँ छोटियाँ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय