माल्हंतौ घरि आंगणै सखी सहेली ग्रामि।

जो जाणूँ पिय माल्हणौ जै मल्है संग्रामि॥

ग्रामि संग्रामि झूँझार माल्है गहड़।

अरि घड़ा खेसवै आप खिसै अनड़॥

घाइ भांजै घड़ा खाग त्राछै घणौ।

मेर मांझी जसौ हेक रिण माल्हंणौ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय