ऊठि अढंगा बोलणा कामणि आखै कंत।

अै हल्ला तो ऊपराँ हूँकळ कळळ हुवंत॥

हूँकळै सींधवौ वीर कळहळ हुवै।

वरण कजि अपछराँ सूरिमाँ बह बुवै॥

त्रिजड़-हथ मयंद जुध गयंद-घड़ तोलणा।

ऊठि हरधवळ सुत अढंगा बोलणा॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय