थोड़ा बोलौ घण सहौ नहचै जो नेठाह।

जो परवाड़ा आगलौ मित्रा करीजै नाह॥

नाह इसड़ा नराँ वात विगड़ै नहीं।

सोना री कसवटी खरी पूजै सही॥

घणा मझ घातियाँ भार झालै घणौ।

बहुत अबगुण कियाँ थोहड़ो बोलणौ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय