ग्रीझणि काँइ उतावळी हय पलाणताँ धीर।

काय बैसाणूँ सत्रा सिर काय आपणै सरीर॥

आपणै गात काय आरि कमळ ऊपराँ।

चापड़ै रातड़ामुखाँ आमिखचराँ॥

धीर हय पलाणत कहै साम्हौ घणी।

गयण मग आकुळी फिरै किम ग्रीझणी॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय