काळो मंजीठी कियाँ नईणै नींदालुद्ध।

अंबर लागौ ऊठियौ विढवा बंस विसुद्ध॥

बंस विसुद्ध वरीयाम साम्हौ विढण।

घणा दिसि दोइणाँ म्हाँलियौ विरद घण॥

थूरहथ धवळरौ थाट मैं वट थियौ।

काळ-चाळौ चखाँ चोळबोळाँ कियौ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय