आस का गुलाब का फूल की

आज एक आखिरी पांखुडी बी

टूट बखर गी रै,

म्हारी झोली भरया

बहता आसूंड़ा मं

तर री छै

प्रेम पाणी बिना माछली सी,

म्हारे मनड़ा कै

सूखा सावण का रुख की

दो तितियाँ

थांरी झोली मं

आ'र, बेबस हो'र, दुःख मं

फड़फड़ा री छै,

देख अस्यो बी

काईं करड़ौ होग्यो

मन जाणता तो

काईं बुरो कर्यो नीं

गलती सूं बी गलती हो गी होवे,

'गर'

सुपणां में बी बेअदबी

हो गी होवें

साची रै उफ ताईं

बी नं करूं

गलती पूछबौ तो दूरे छै

आँख्या भी ऊँची नीं करुँगी,

जीवण भर कर्यो इंतजार का

फळ मं,

बस एक पल दर्शन को

सुख तो भुगत लेबा दे,

सजा में गरदन कटवा लूं

पण एक सरत या छै म्हारी

तलवार थांरा प्रेम सूं उठ्यां

हाथां मं होवे

म्हारी गरदन कै ऊपरे।

स्रोत
  • सिरजक : मंजू कुमारी मेघवाल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी