बस्ती बस्ती सौर हुयो है दूसरी गंगा ल्याणी है दुसमनां सूं तू निभाणू छोड़ दे जठै जठै उजियारा व्हैला मोहबत री बातां, मत कर सांच सूं इंकार कर रह्या है, युधिष्ठिर