Anjas

पद

पद छंद री अेक विधा है। राजस्थानी पद छंद रै मांय मात्रावां अर वरणा री संख्या रो निरधारण नीं हुवै। पद नै गेय रूप दे’र भगती साहित्य नै घणो लूठो करण री खेचळ करीजी। पद रो प्राचीन समै में नांव राग शीर्षक सूं जाण्यो जावै।

आत्माराम 'रामस्नेही संत'

आत्माराम 'रामस्नेही संत'

रामस्नेही रूपदास जी अवधूत रा सिष्य। गुरु रूपदास जी री जीवनी रा प्रामाणिक व्याख्याकार अर 'मुगति-विलास' ग्रंथ रा सिरजनकर्ता।

आलम जी

आलम जी

1473 -1553

विश्नोई पंथ रै संस्थापक गुरु जांभोजी रा हुजूरी सिस्य अर गायन विद्या मांय अति निपुण संतकवि।

गरीबदास

गरीबदास

1575 -1636

प्रमुख दादूपंथी संत कवि। रचनावां में भगती, नीति, गुरु महिमा, संत जीवण चरित अर दर्शन आद रा पद।

गवरी बाई

गवरी बाई

1759 -1808

वागड़ री मीरां रै नांव सूं ओळखीजै। रचनावां में ज्ञान, भगती अर वैराग री महिमा बताइज्योड़ी है। भाषा राजस्थानी जिण में ब्रज, गुजराती अर संस्कृत रा शब्द भी निंगै आवै।

गोकल जी

गोकल जी

1643 -1733

विश्नोई पंथ सूं संबंधित संत कवि। गुरु महिमा, संशय निवारण अर आत्म निवेदन सूं संबंधित रचनावां।

चतुर सिंह जी बावजी

चतुर सिंह जी बावजी

1880 -1929

मेवाड़ रा आधुनिक समै रा सिरै कवि। भगती-निति रा दूहा अर पदां सारू चावा।

जगन्नाथदास

जगन्नाथदास

दादूपंथी संत कवि। अध्यात्म अर गुरु महिमा सूं सम्बंधित रचनावां।

जांभोजी

जांभोजी

1451 -1536

'विश्नोई संप्रदाय' रा प्रवर्तक। रचनावां में सगुण अर निर्गुण दोनूं धारावां रो प्रभाव। लोक में विष्णु रा अवतार अर आधुनिक पर्यावरण वैज्ञानिक रूप में चावा।

ठाकुर गुमानसिंह

ठाकुर गुमानसिंह

1840 -1914

मेवाड़ रा सिरै भगत कवि अर योग साधक। भगती, मीमांसा, योगसार आद रा छंद, पद अर कवित्त खातर चावा।

डेल्हजी

डेल्हजी

1433 -1493

जांभाणी साहित्य रा रचनाकारां मांय खास गिणावणजोग नांव। इणां री 'बुध परगास' अर 'कथा अहमनी' नांव री दो रचनावां मिळै।

तखतसिंह

तखतसिंह

1819 -1873

जोधपुर रा शासक। भगति अर सिणगार रा पदों रा सिरजक।

नागरीदास

नागरीदास

1699 -1764

किशनगढ़ रा शासक, मूल नांव सावंत सिंह। भक्ति-भाव री रचनावां करी।

पदम भगत

पदम भगत

1443 -1498

पदम साध या पदम तेली नांव सूं भी जांणिजै। जन साधारण री बोलचाल भासा में 'रुकमणी-मंगल' नांव रे ग्रंथ री रचना करी।

पद्मनाभ

पद्मनाभ

जालोर रा चौहान शासक अखैराज रा आश्रित। 'कान्हड़दे प्रबंध' जैड़े चावै ग्रंथ रा सिरजक।

प्रताप बाला

प्रताप बाला

1834

जोधपुर महाराजा तखत सिंह जी री महाराणी। धणी, बेटा आद री अकाळ मौत बाद संसार सूं विरक्त होय भगती में लीन। कृष्ण भगती रा पद रच्या।

परसजी खाती

परसजी खाती

1373 -1464

स्वामी रामानंदाचार्यजी रै पौत्रशिष्य अर राजर्षि पीपाजी रां शिष्य। राजस्थान रै प्रसिद्ध संत-भगवंत रा परम भगत।

बखना जी

बखना जी

1623

दादूदयाल रा प्रमुख बावन शिष्यां में सूं एक। कवि अर गायक संत रै रूप में चावा। पदां में सांप्रदायिक सदभाव रो प्रचार अर आत्म ज्योति जगावण माथै बल दियौ।

बाबा रामदेवजी

बाबा रामदेवजी

1352 -1385

रामसा पीर, आलम राजा, निकलंक नेजाधारी आद विरद धारी। राजस्थान रा चावा लोक देवता अर समाज सुधारक। द्वारकाधीश रा अवतार मानीजै। अछूतोद्धारक महापुरुषों में आगीवाण नांव।

मेहा गोदारा

मेहा गोदारा

1483 -1544

राजस्थान रा राम भक्त संत जिका राजस्थानी री पैली रामायण लिखी। इण रौ सम्बंध गुरु जांभोजी रै 'विश्नोई पंथ' सूं है।

मीराबाई

मीराबाई

1498 -1546

मारवाड़ व मेवाड़ रा राजपरिवार सूं संबंधित अर जग चावी भगत कवयित्री। कृष्ण भगती विषयक माधुर्य भाव रा पदां खातर चावा।

मोहनदास जी

मोहनदास जी

1740 -1819

'मोहन पंथ' रा संस्थापक, अठारवीं सदी रा पुग्योड़ा महापुरुष अर संत कवि।

रज्जब जी

रज्जब जी

1567 -1690

बालपणै रो नाम रज्जब अली खाँ। परणीजण ने जावता समै दादूजी रै प्रभाव मे आय'र वैरागी बणिया अर उमर भर बींद वेश में रैया। रचनावां में राजस्थानी अर इस्लामिक साधनां रा शब्दां री अधिकता।

रूपांदे

रूपांदे

1352 -1399

मालानी छैतर रा शासक रावळ मल्लीनाथ री राणी अर योग साधक उगमसी भाटी री शिष्या। भगती रा पद रचण रै साथै समाज रा नीचला धड़ा में ज्ञान री अलख जगाई।

राजा मानसिंह

राजा मानसिंह

1783 -1843

जोधपुर रा महाराजा। नाथ पंथ में आस्था। रीति, सिणगार अर वीररस रा गीत भी मिळै।

संत केसोदास

संत केसोदास

1588 -1679

गुरु जाम्भोजी री परंपरा रा संत वील्होजी रै सात महताऊ शिष्यां में ज्ञान विद्या में सैं सूं निपुण। राजस्थानी लोगां रै सामाजिक जीवण अर संस्कृति रो रोचक बखाण इणां री रचनावां में देखण ने मिळै।

संत चरणदास

संत चरणदास

1703 -1781

राजस्थानी संत साहित्य रा उजळा रत्न, मेवात क्षेत्र रा ख्यात संत कवि अर 'चरणदासी संप्रदाय' रा प्रवर्तक। सगुण अर निर्गुण दोनूं तरै रे ब्रह्म रा उपासक। साहित्य में भी निर्गुण उपासना सागै सगुण साधना री झलक निंगै आवै।

संत दरियाव जी

संत दरियाव जी

1676 -1758

'रामस्नेही संप्रदाय' री रैण शाखा रा प्रवर्तक। घणकरी रचनावां निर्गुण निराकार राम री साधना अर गुरु महिमा सूं सम्बंधित; साथै ही आत्मसाक्षात्कार जनित अनुभवां ने साखीयों अर पदों में व्यक्त करिया है।

संत पीपाजी

संत पीपाजी

जलम नाम प्रताप सिंह। खीची राजवंश सू सम्बंधित अर गागरौन रा शासक। रामानंद जी सूं दीक्षा लेयर राजस्थान मांय निर्गुण भक्ति परंपरा री शुरुआत करी। दरजी समुदाय रा आराध्य रे रूप में पूजीजे।

संत मूलदास जी

संत मूलदास जी

रामस्नेही संत कवि। सींथल पीठ रै महात्मा नरायणदास जी वामटसर रा सिष्य अर कालू गांव मांय रामद्वारा रा संस्थापक संत।

संत सुखरामदास

संत सुखरामदास

1726 -1816

दादूपंथी लालदासजी सूं दीक्षित, समाज सेवी अर संत कवि। रचनावां में घणकरी निर्गुण भक्ति रा पद अर वाणियाँ।

संत सेवगराम जी महाराज

संत सेवगराम जी महाराज

1794 -1850

सूरसागर, जोधपुर मांय 'रामस्नेही संप्रदाय' री विरक्त शाखा रै प्रवर्तक संत परसराम जी महाराज रा परमहंस सिष्य। रचित वाणीयों में सामान्य जीवण ने इदको बणावण सागै ही आत्मज्ञान, आत्म कल्याण अर जनहित री भावना।

सुंदरदास जी

सुंदरदास जी

1596 -1689

दादूजी रा शिष्य अर निर्गुण संत कवियों में सैं सूं ज्यादा शास्त्रज्ञानी व काव्य कला निपुण संत कवि। योग अर अद्वैत वेदांत रा समर्थक। काव्य रीतियों सूं आछी तरै परिचित रस सिद्ध कवि।

समसदीन

समसदीन

1433 -1493

नागौर रा काज़ी अर संत जाम्भोजी सूं प्रभावित मुसलमान कवि। आपरी रचनावां काया री क्षणभंगुरता, अबखाया अर मायाजाळ में भरमायोड़े मिनख नै ज्ञान करावण रै सागै ही देस अर समाज नें खरौ ज्ञान अर चेतना रौ आलोक देवै।

समान बाई

समान बाई

1825 -1885

कृष्ण भगत कवयित्री, डिंगल रा चावा कवि रामनाथ कविया री पुत्री। 'मत्स्य री मीरा' रे रूप में ओळखाण। रचनावां में खासकर माधुरी भाव, दास्य भाव अर सरणागति रे भावां रो वरणाव।

सुरजनदास पूनिया

सुरजनदास पूनिया

1583 -1691

'विश्नोई संप्रदाय' रा आगली पांत रा संत कवि। आपरी गहरी भगती साधना अर शास्त्र ज्ञान सूं राजस्थानी साहित्य ने हरियल करियो। रचनावां में मध्यकाल री ठेठ राजस्थानी भाषा री बानगी।

सरूपां बाई

सरूपां बाई

1760 -1801

मेवाड़ छेतर री संत कवयित्री। भक्ति, नीति, ज्ञान व मुक्ति सूं संबंधित रचनावां।

स्वामी आत्माराम

स्वामी आत्माराम

1759

'निरंजनी संप्रदाय' रा चावा संत कवि। भगती, नीति, अध्यात्म अर गुरु महिमा सूं संबंधित रचनावां।

स्वामी देवादास जी

स्वामी देवादास जी

1754 -1787

रामस्नेही संत संप्रदाय रै महात्मा रामचरण जी रा प्रमुख शिष्य। रचना संसार घणो लूंठो, 'अणभै बाणी' नाम सूं संकलित-प्रकाशित।

स्वामी रामचरण

स्वामी रामचरण

1719 -1798

'रामस्नेही संप्रदाय' री शाहपुरा शाखा रा प्रवर्तक। मूरति पूजा रा विरोधी। साखी, सवैया, चंद्रायणा, झूलणा, कवित्त, कुंडलियां, रेखता आद छन्दां में भगती, नीति अर अध्यात्म रा पद रचिया।

सहजो बाई

सहजो बाई

1725 -1805

'चरणदासी पंथ' रा संस्थापक चरणदास जी री शिष्या अर मेवात छैतर सूं संबंधित चावी संत कवयित्री।

साहबराम राहड़

साहबराम राहड़

1814 -1891

गत सदी रा सिद्ध, अनुभवी, ज्ञानी-ध्यानी अर पूगता संत कवि। गुरु जांभोजी रै जीवन अर विश्नोई पंथ रै इतिहास पर आधारित महताऊ आख्यान काव्य 'जम्भ सार' रा सिरजक।

हरजी भाटी

हरजी भाटी

बाबा रामदेवजी रै भगति परंपरा रा अनुभवी अर पूग्योड़ा ज्ञानी-ध्यानी संतकवि। प्रसिद्धि रौ आधार 'बाबा रामदेव रौ ब्यावलो' महाकाव्य।

हरिदास निरंजनी

हरिदास निरंजनी

1455 -1543

निरंजनी संप्रदाय रा संस्थापक। डकैतपणौ छोड़'र संत बणिया इण कारण कलियुग रा वाल्मिकी बाजै। घणकरा भजन अर पदां री रचना भगती, नीति, चेतावणी अर महात्म्य सूं संबंधित।