
पद
पद छंद री अेक विधा है। राजस्थानी पद छंद रै मांय मात्रावां अर वरणा री संख्या रो निरधारण नीं हुवै। पद नै गेय रूप दे’र भगती साहित्य नै घणो लूठो करण री खेचळ करीजी। पद रो प्राचीन समै में नांव राग शीर्षक सूं जाण्यो जावै।
पद छंद री अेक विधा है। राजस्थानी पद छंद रै मांय मात्रावां अर वरणा री संख्या रो निरधारण नीं हुवै। पद नै गेय रूप दे’र भगती साहित्य नै घणो लूठो करण री खेचळ करीजी। पद रो प्राचीन समै में नांव राग शीर्षक सूं जाण्यो जावै।
रामस्नेही रूपदास जी अवधूत रा सिष्य। गुरु रूपदास जी री जीवनी रा प्रामाणिक व्याख्याकार अर 'मुगति-विलास' ग्रंथ रा सिरजनकर्ता।
मेवाड़ रा सिरै भगत कवि अर योग साधक। भगती, मीमांसा, योगसार आद रा छंद, पद अर कवित्त खातर चावा।
जोधपुर महाराजा तखत सिंह जी री महाराणी। धणी, बेटा आद री अकाळ मौत बाद संसार सूं विरक्त होय भगती में लीन। कृष्ण भगती रा पद रच्या।
स्वामी रामानंदाचार्यजी रै पौत्रशिष्य अर राजर्षि पीपाजी रां शिष्य। राजस्थान रै प्रसिद्ध संत-भगवंत रा परम भगत।
रामसा पीर, आलम राजा, निकलंक नेजाधारी आद विरद धारी। राजस्थान रा चावा लोक देवता अर समाज सुधारक। द्वारकाधीश रा अवतार मानीजै। अछूतोद्धारक महापुरुषों में आगीवाण नांव।
राजस्थान रा राम भक्त संत जिका राजस्थानी री पैली रामायण लिखी। इण रौ सम्बंध गुरु जांभोजी रै 'विश्नोई पंथ' सूं है।
गुरु जाम्भोजी री परंपरा रा संत वील्होजी रै सात महताऊ शिष्यां में ज्ञान विद्या में सैं सूं निपुण। राजस्थानी लोगां रै सामाजिक जीवण अर संस्कृति रो रोचक बखाण इणां री रचनावां में देखण ने मिळै।
राजस्थानी संत साहित्य रा उजळा रत्न, मेवात क्षेत्र रा ख्यात संत कवि अर 'चरणदासी संप्रदाय' रा प्रवर्तक। सगुण अर निर्गुण दोनूं तरै रे ब्रह्म रा उपासक। साहित्य में भी निर्गुण उपासना सागै सगुण साधना री झलक निंगै आवै।
'रामस्नेही संप्रदाय' री रैण शाखा रा प्रवर्तक। घणकरी रचनावां निर्गुण निराकार राम री साधना अर गुरु महिमा सूं सम्बंधित; साथै ही आत्मसाक्षात्कार जनित अनुभवां ने साखीयों अर पदों में व्यक्त करिया है।
जलम नाम प्रताप सिंह। खीची राजवंश सू सम्बंधित अर गागरौन रा शासक। रामानंद जी सूं दीक्षा लेयर राजस्थान मांय निर्गुण भक्ति परंपरा री शुरुआत करी। दरजी समुदाय रा आराध्य रे रूप में पूजीजे।
रामस्नेही संत कवि। सींथल पीठ रै महात्मा नरायणदास जी वामटसर रा सिष्य अर कालू गांव मांय रामद्वारा रा संस्थापक संत।
दादूपंथी लालदासजी सूं दीक्षित, समाज सेवी अर संत कवि। रचनावां में घणकरी निर्गुण भक्ति रा पद अर वाणियाँ।
सूरसागर, जोधपुर मांय 'रामस्नेही संप्रदाय' री विरक्त शाखा रै प्रवर्तक संत परसराम जी महाराज रा परमहंस सिष्य। रचित वाणीयों में सामान्य जीवण ने इदको बणावण सागै ही आत्मज्ञान, आत्म कल्याण अर जनहित री भावना।
दादूजी रा शिष्य अर निर्गुण संत कवियों में सैं सूं ज्यादा शास्त्रज्ञानी व काव्य कला निपुण संत कवि। योग अर अद्वैत वेदांत रा समर्थक। काव्य रीतियों सूं आछी तरै परिचित रस सिद्ध कवि।
'विश्नोई संप्रदाय' रा आगली पांत रा संत कवि। आपरी गहरी भगती साधना अर शास्त्र ज्ञान सूं राजस्थानी साहित्य ने हरियल करियो। रचनावां में मध्यकाल री ठेठ राजस्थानी भाषा री बानगी।
'निरंजनी संप्रदाय' रा चावा संत कवि। भगती, नीति, अध्यात्म अर गुरु महिमा सूं संबंधित रचनावां।
रामस्नेही संत संप्रदाय रै महात्मा रामचरण जी रा प्रमुख शिष्य। रचना संसार घणो लूंठो, 'अणभै बाणी' नाम सूं संकलित-प्रकाशित।
'रामस्नेही संप्रदाय' री शाहपुरा शाखा रा प्रवर्तक। मूरति पूजा रा विरोधी। साखी, सवैया, चंद्रायणा, झूलणा, कवित्त, कुंडलियां, रेखता आद छन्दां में भगती, नीति अर अध्यात्म रा पद रचिया।
गत सदी रा सिद्ध, अनुभवी, ज्ञानी-ध्यानी अर पूगता संत कवि। गुरु जांभोजी रै जीवन अर विश्नोई पंथ रै इतिहास पर आधारित महताऊ आख्यान काव्य 'जम्भ सार' रा सिरजक।
निरंजनी संप्रदाय रा संस्थापक। डकैतपणौ छोड़'र संत बणिया इण कारण कलियुग रा वाल्मिकी बाजै। घणकरा भजन अर पदां री रचना भगती, नीति, चेतावणी अर महात्म्य सूं संबंधित।