Anjas

पद

पद छंद री अेक विधा है। राजस्थानी पद छंद रै मांय मात्रावां अर वरणा री संख्या रो निरधारण नीं हुवै। पद नै गेय रूप दे’र भगती साहित्य नै घणो लूठो करण री खेचळ करीजी। पद रो प्राचीन समै में नांव राग शीर्षक सूं जाण्यो जावै।

संत केसोदास

संत केसोदास

1588 -1679

गुरु जाम्भोजी री परंपरा रा संत वील्होजी रै सात महताऊ शिष्यां में ज्ञान विद्या में सैं सूं निपुण। राजस्थानी लोगां रै सामाजिक जीवण अर संस्कृति रो रोचक बखाण इणां री रचनावां में देखण ने मिळै।

संत चरणदास

संत चरणदास

1703 -1781

राजस्थानी संत साहित्य रा उजळा रत्न, मेवात क्षेत्र रा ख्यात संत कवि अर 'चरणदासी संप्रदाय' रा प्रवर्तक। सगुण अर निर्गुण दोनूं तरै रे ब्रह्म रा उपासक। साहित्य में भी निर्गुण उपासना सागै सगुण साधना री झलक निंगै आवै।

संत दरियाव जी

संत दरियाव जी

1676 -1758

'रामस्नेही संप्रदाय' री रैण शाखा रा प्रवर्तक। घणकरी रचनावां निर्गुण निराकार राम री साधना अर गुरु महिमा सूं सम्बंधित; साथै ही आत्मसाक्षात्कार जनित अनुभवां ने साखीयों अर पदों में व्यक्त करिया है।

संत पीपाजी

संत पीपाजी

जलम नाम प्रताप सिंह। खीची राजवंश सू सम्बंधित अर गागरौन रा शासक। रामानंद जी सूं दीक्षा लेयर राजस्थान मांय निर्गुण भक्ति परंपरा री शुरुआत करी। दरजी समुदाय रा आराध्य रे रूप में पूजीजे।

संत मूलदास जी

संत मूलदास जी

रामस्नेही संत कवि। सींथल पीठ रै महात्मा नरायणदास जी वामटसर रा सिष्य अर कालू गांव मांय रामद्वारा रा संस्थापक संत।

संत सुखरामदास

संत सुखरामदास

1726 -1816

दादूपंथी लालदासजी सूं दीक्षित, समाज सेवी अर संत कवि। रचनावां में घणकरी निर्गुण भक्ति रा पद अर वाणियाँ।

संत सेवगराम जी महाराज

संत सेवगराम जी महाराज

1794 -1850

सूरसागर, जोधपुर मांय 'रामस्नेही संप्रदाय' री विरक्त शाखा रै प्रवर्तक संत परसराम जी महाराज रा परमहंस सिष्य। रचित वाणीयों में सामान्य जीवण ने इदको बणावण सागै ही आत्मज्ञान, आत्म कल्याण अर जनहित री भावना।

सुंदरदास जी

सुंदरदास जी

1596 -1689

दादूजी रा शिष्य अर निर्गुण संत कवियों में सैं सूं ज्यादा शास्त्रज्ञानी व काव्य कला निपुण संत कवि। योग अर अद्वैत वेदांत रा समर्थक। काव्य रीतियों सूं आछी तरै परिचित रस सिद्ध कवि।

समसदीन

समसदीन

1433 -1493

नागौर रा काज़ी अर संत जाम्भोजी सूं प्रभावित मुसलमान कवि। आपरी रचनावां काया री क्षणभंगुरता, अबखाया अर मायाजाळ में भरमायोड़े मिनख नै ज्ञान करावण रै सागै ही देस अर समाज नें खरौ ज्ञान अर चेतना रौ आलोक देवै।

समान बाई

समान बाई

1825 -1885

कृष्ण भगत कवयित्री, डिंगल रा चावा कवि रामनाथ कविया री पुत्री। 'मत्स्य री मीरा' रे रूप में ओळखाण। रचनावां में खासकर माधुरी भाव, दास्य भाव अर सरणागति रे भावां रो वरणाव।

सुरजनदास पूनिया

सुरजनदास पूनिया

1583 -1691

'विश्नोई संप्रदाय' रा आगली पांत रा संत कवि। आपरी गहरी भगती साधना अर शास्त्र ज्ञान सूं राजस्थानी साहित्य ने हरियल करियो। रचनावां में मध्यकाल री ठेठ राजस्थानी भाषा री बानगी।

सरूपां बाई

सरूपां बाई

1760 -1801

मेवाड़ छेतर री संत कवयित्री। भक्ति, नीति, ज्ञान व मुक्ति सूं संबंधित रचनावां।

स्वामी आत्माराम

स्वामी आत्माराम

1759

'निरंजनी संप्रदाय' रा चावा संत कवि। भगती, नीति, अध्यात्म अर गुरु महिमा सूं संबंधित रचनावां।

स्वामी देवादास जी

स्वामी देवादास जी

1754 -1787

रामस्नेही संत संप्रदाय रै महात्मा रामचरण जी रा प्रमुख शिष्य। रचना संसार घणो लूंठो, 'अणभै बाणी' नाम सूं संकलित-प्रकाशित।

स्वामी रामचरण

स्वामी रामचरण

1719 -1798

'रामस्नेही संप्रदाय' री शाहपुरा शाखा रा प्रवर्तक। मूरति पूजा रा विरोधी। साखी, सवैया, चंद्रायणा, झूलणा, कवित्त, कुंडलियां, रेखता आद छन्दां में भगती, नीति अर अध्यात्म रा पद रचिया।

सहजो बाई

सहजो बाई

1725 -1805

'चरणदासी पंथ' रा संस्थापक चरणदास जी री शिष्या अर मेवात छैतर सूं संबंधित चावी संत कवयित्री।

साहबराम राहड़

साहबराम राहड़

1814 -1891

गत सदी रा सिद्ध, अनुभवी, ज्ञानी-ध्यानी अर पूगता संत कवि। गुरु जांभोजी रै जीवन अर विश्नोई पंथ रै इतिहास पर आधारित महताऊ आख्यान काव्य 'जम्भ सार' रा सिरजक।