
रज्जब जी
बालपणै रो नाम रज्जब अली खाँ। परणीजण ने जावता समै दादूजी रै प्रभाव मे आय'र वैरागी बणिया अर उमर भर बींद वेश में रैया। रचनावां में राजस्थानी अर इस्लामिक साधनां रा शब्दां री अधिकता।
बालपणै रो नाम रज्जब अली खाँ। परणीजण ने जावता समै दादूजी रै प्रभाव मे आय'र वैरागी बणिया अर उमर भर बींद वेश में रैया। रचनावां में राजस्थानी अर इस्लामिक साधनां रा शब्दां री अधिकता।
आई आंधी अकल की
अब मोहिं नाचत राखहु नाथ
औधू सुरही सकति संभाली
बधिक बमेकी प्रान है
भगति भावै राम भगति भावै
बुधि बेली लो, बेली लो
दरसन सांच जु सांई दीया
हिंदू तुरक सुणौ रे भाई
जीव जुदा जगदीस मैं
काल करम बसि को नहीं
करि न कुसंगति आत्मा
मालिक मिहरि करी भरपूरि
माया माहिं भज्या हरि जाइ
म्हारौ मंदिर सूनौ राम बिन
पहले दुख पीछे सुख होइ
प्रीति गुर गोबिंद सौं
राम राइ अइया मन अपराधी
राम राइ महा कठिन यहु माया
राम राइ राखि लेउ जन तेरा
रे मन सूर संक क्यूं मानै
रे मन सूर संत क्यूं भाजै
रे मन सूर समै क्यूं भागै
रे प्राणी यहु खेलि सिकार रे
संतौ मनमोहन मिलि नावै
संतौ आवै जाइ सु माया।
संतौ अद्भुत खेल अगाधा
संतौ बाट बटाऊ माहीं
संतौ भेष भरम कछु नाहीं
संतौ ऐसा यहु आचारा
संतौ कण चाकी कौं पीसै
संतौ मीन गगन में गरज्यो
संतौ बसुधा बिरिछ समाई
संतौ यहु गति उलटी जाणी
संतौ यहु गति बिरला बूझै
संतौ बोध बिमल बरदाई
संतौ देख्या अद्भुत खेला
सतगुर सौं जो चाहि
सूषिम सेव सरीर मैं
यूं मन मिरतग व्है