
रज्जब जी
बालपणै रो नाम रज्जब अली खाँ। परणीजण ने जावता समै दादूजी रै प्रभाव मे आय'र वैरागी बणिया अर उमर भर बींद वेश में रैया। रचनावां में राजस्थानी अर इस्लामिक साधनां रा शब्दां री अधिकता।
बालपणै रो नाम रज्जब अली खाँ। परणीजण ने जावता समै दादूजी रै प्रभाव मे आय'र वैरागी बणिया अर उमर भर बींद वेश में रैया। रचनावां में राजस्थानी अर इस्लामिक साधनां रा शब्दां री अधिकता।
अगणित कष्ट अनेक
अज्ञानी कसि देह न
अकलि सु आतम
बिरह बिथा तन पीर
जो मधि मारग रज्जब रखं
मनिषा देह स्थान
मुख ही परिगासै
नर नाराइन देह
सक्ती सुख ससि सीर
सिष्य न होये आप
सुखी सकल संसार
ता समि नहिं कोई त्यागी
तौ ताते तावं घाले घावं
तौ बेद कुरानं उभै अयानं
तौ बैरी बासं दूंदर दासं
तौ भूपति भाजं कीये पाजं
तौ द्वै पख त्यागं पाया मागं
तौ घर व्योम निरालं अद्भुत
तौ गुर सब्दं निरख्या नद्दं
तौ खत्री चारं खेत बुहारं
तौ खोये खल खाहं मही
तौ सुन्या सु कन्नं पखि
तौ सूर संभालं गहि
तौ तजि सब ओटं काया
तौ उभै न रीतं पाई
तौ सूर सुभट्टं करि खल
यहि काया कल्यान