
रज्जब जी
बालपणै रो नाम रज्जब अली खाँ। परणीजण ने जावता समै दादूजी रै प्रभाव मे आय'र वैरागी बणिया अर उमर भर बींद वेश में रैया। रचनावां में राजस्थानी अर इस्लामिक साधनां रा शब्दां री अधिकता।
बालपणै रो नाम रज्जब अली खाँ। परणीजण ने जावता समै दादूजी रै प्रभाव मे आय'र वैरागी बणिया अर उमर भर बींद वेश में रैया। रचनावां में राजस्थानी अर इस्लामिक साधनां रा शब्दां री अधिकता।
भजै संसार लगै न पुकार न होइ करार
धरेही को ज्ञान धरेही को ध्यान
दुखी दिन रात परी बिललात
गंभीर धीर बिरचि बीर
हरि बियोग बिघन मूल
हो ब्रह्मा बियोग ब्रह्मांड मैं सोग
हो पीय बियोग तजे सब लोग
जे पर सूर लहै सु महूरत
कहै सब हद गहै सब हद
परी झर माहिं निकसत नाहिं
सबद की सांगि लगी जेहि आंगि
सेवग अंध जाचंद
सिंहिनी सुमति काढ़ि जे
सूर स्यंध छेरे खाइ
उठी उर जागि बिरह की आगि