लोक पर ग़ज़ल

सबदकोसां में लोक रौ

अरथ घणै अरथां में लेईज्यौ है। कठैई इणरौ अरथ 'प्रजा' मानीज्यौ है तो कठैई 'मानखै' रै अरथ में इणनै लीरीज्यौ है। अठै प्रस्तुत रचनावां लोक सबद रै आखती-पाखती रचियोड़ी है।

ग़ज़ल15

जीवण रो दै मोल भलोड़ा

अब्दुल समद ‘राही’

याद नित आयां सरै

किशोर कल्पनाकान्त

जिन्दगांणी कठै

भागीरथसिंह भाग्य

सब का दोष बखाण भायला

बुद्धिप्रकाश पारीक

इक सुरंग आ गरीबी

आईदान सिंह भाटी

बोल थारो काई हाल छै

हेमन्त गुप्ता पंकज