दिनड़ौ ढळतां देख, झालरी सोग जतावै।
अेवड़ रग चरगाह, टुळकतौ टळतौ आवै।
करसौ थकियै पंथ, घरां दिस नींठ थिगावै।
मूझ, अंधारै पांण, जगत नै छोड्यां जावै॥
चिळकंतौ भूपाट, निजर सूं लुपतौ जावै।
सगळै पवन उदास, थकी सांयंत लखावै।
फगत कठैक भणकती, झींगर उडै चकारै।
अळगै बाड़ां टोकरियां, नींदल थपकारै॥
सवाय वा मीनार, वेल सूं जो वींटायत।
बिलखौ घूघू जठै, चांद सूं करै सिकायत।
इण माळै अेकांत, गुढे क्यूं रांचण आवै।
जूनी मो जागीर, दखल किण भांत दिरावै॥
वे झंखरड़ा रूंख जिका तळ छीदी छाया।
हांणफांण-सी घास, जठै के धूंबा ठाया।
अेकूकी थह मांय, आंण निज ढांणी के रा।
सूता नींद अछेह, घणकरा नांढ वडेरा॥
रंगभीनै परभात, पवन रौ मुधरौ हेलौ।
चहकै बैठौ छांन, कन्हैयो वो अलबेलौ।
कूकड़ री कुरळाट, सिकारी सींगी चाळा।
पण पौढ्या धर सेज, पुरुष नीं जागण वाळा॥
वां पौढणियां काज, हमैं नीं तपणी जगसी।
सांझ समै घरनार, सँजीरै फेर न लगसी।
बाबल आतां पेख, बाळिया हुड़ी न करसी।
वालां होडाहोड, फेर नीं कड़ियां चड़सी॥
जकां दातरै पांण, बेड़णी घणकर लाटी।
हळां ऊमरै हूंत, उखेड़ी करड़ी माटी।
कितरौ धरता कोड, जोततां खैड़ै जोड़ी।
केम गुड़ाया रूंख, आछटे घाव अरोड़ी॥
हूंस! न कीजे खिखर, करी ज्यां खरी कमाई।
बारौ दियौ न भाग, घरू रळिया घण थाई।
रे वैभव! सुण वात, मती घिरणा सूं मुळके।
ख्यात गरीबां अळप, जकी सैणप सूं झिळकै॥
विरदा तणौ गुमेज, अडंबर सत्ता वाळौ।
घणौ रूप गरकाब, चळत माया रौ चाळौ।
जोवै बाटां जांण, अचूक घड़ी रै आंणै।
थाट पाट रौ पंथ, अंत तौ जाय मसाणै॥
रे अभिमानी जीव! दोष मत वांनै दीजै।
जे समाध पर नहीं, जीत नीसांण लखीजै।
गिरजा हंदी गळी, मंडी मिहराबां माही।
जे हरजस री गूंज, बधारै कीरत नांही॥
जस मंडिया म्रतबांण, मुळकती फाबै मूरत।
उडियौ पिंजर सास, वळै नीं कोई सूरत।
मुरदामाटी कद चेतै, सुण कुरबां वांणी।
कदे काळ रै कांन, खुसामद लगै सुहांणी॥
इण बेकदरी ठौड़, सुघड़ हिय सायत सूतौ।
दिब्य जोत सूं दीप, किणी पुळ हुऔ अछूतौ।
पतसाही छड़ पांण, लाटणौ हुकम लगातौ।
कै सजीव बण वीण, नाद अणहद जगातौ॥
पण पीढ्यां परमांण, घणै अनुभव सूं छिलियौ।
ज्ञांन-ओळियौ, वां आंखड़ियां, कदे न खुलियौ।
कंगाली री फांफ, हियै री हूंस मिटाई।
पाळौ पड़ आतमा सहज सुख-सीर दटाई॥
घण मोती अणमोल, समंद रै तळै समावै।
अथग अंधारी खोह, आब निजरां नीं आवै।
घण रूपाळा फूल, खिलै जा थोथी थळियां।
मुरझै लोप मिठास, केक अणदीठी कळियां॥
हुतौ ‘हैम्पडन’ कोय, वजर छाती रौ जड़ियौ।
खुद रै खेतां काज, जाय जुलमी सूं भिड़ियौ।
सूतौ ‘मिल्टन’ अेथ अबोलौ कोय अछांनौ।
‘क्रॉमवेल’ पण रगत-पात, बिन ही भड़ मांनौ॥
बोलण छटा बखांण, हुकम संसद में हालै।
धूंसण री धमकियां, सुणत बिन गिनर, न सालै।
मुळकंती धर माथ, तौर सुख लिख्यौ न त्यांही।
निज पढ़णौ इतिहास, देस रै नैणां मांही॥
वांरै किसमत फगत, न रोक्या गुण वधतोड़ा।
जुलमां रै पण जोग, रोक अटकाया रोड़ा।
रोकी वाढण राह, चोळ सिंघासण चड़णौ।
मिनखां सूं मुख मोड़, कृपा रौ कपाट जड़णौ॥
चित जांणंतौ साच, छळां पच नहीं छिपायौ।
लोयण भोळी लाज, नींठ पड़दौ न लगायौ।
माया-मद मिंदरां, नहीं गह डंबर गाज्यौ।
जस-झड़ियां री जोत, सुकवि बण धूंप न साज्यौ॥
अळगा गैली भीड़ तणै ओछै झगड़ां सूं।
वांरी ठीमर हरां, कदे नहिं डिगी धड़ां सूं।
ठंडी अर अेकांत, घणेरी जीवण घाटी।
नीरांयत सांयत री वां पाळी परिपाटी॥
पण तौही अपमांन हूंत, वे फूल रुखाळण।
निबळौ-सो नीसांण, नैड़कौ खड़ौ चितारण।
तुकां अजब लिख तेथ, खापटौ ढकियौ खासौ।
वहतां सूं वीणंत, नांखज्यो दांण निसासौ॥
थड़ै बखांणां थाट, ठौड़ मरसियां ठिकांणै।
सिरफ नांम नै समत, अपढ कवि मांड्या आणै।
वळे पवित्तर बोल, लिख्या चौफेर लखीजै।
मरणौ हक री मौत, सीख गांवैल्यां दीजै॥
सुख दुख सूं संपूर, जगत में आ जिनगांणी।
किण नित भूलण काज, तज्यौ तन सासत प्रांणी।
विन ओळू विख्यात, आस अभिलास झूंरती।
सुरंगै दिन री सोभ, तजी किण हद पळकंती॥
वीछड़ती आतमा, रंजै सिगरत रै खोळै।
मींच्या नैणां माथ, प्रेम रा आंसू ढोळै।
हिवड़ै री वा हूक, थड़ै लग पूग सुणीजै।
भसमी में पण भाळ, याद री झाळ लखीजै॥
मांणहीण हा मृतक, सुकव थूं भिदियौ ज्यांसूं।
सादी कथा संजोय, आखरां ढाळ्या आंसू।
अेकांयत कोइ आंण, ध्यांन जे आतम धरसी।
निसचै थारै नांम, कांम री पूछा करसी॥
सायत धोळां केस, पयंपै ग्वाळ पड़ूतर।
पेख्यौ म्हे सांप्रत्त, जको झांझरकै घणकर।
ओस-कणां झड़काय, वाटड़ी छेकी बढतो।
मिलण ऊगतै भांण, डूंगरी सिखरां चढतौ॥
ऊ अळगौ-सो रूंख, झूमतौ झेरां खावै।
जूनी औटळ जड़ां, गूंथळै देतौ जावै।
अरंढै रा उण तळै, पसरतौ लांबी तांणै।
खळकंतौ जळ खाळ, जोवतौ टुग-टुग जांणै॥
उण वन रै पाखती, कदे घिरणा सूं मुळक्यौ।
मनां भांजघड़, मांड, कदे गुणमुणतौ टुळक्यौ।
कदे’क नीची धूण, सोग में ज्यूं कोई सूनौ।
कै पागल नर कना, हेत रौ हतक नमूनौ॥
अेक विहांणै आय, न दीठौ नित ज्यूं भखरी।
मिळ्यौ न झाड़ समीप, न हौ प्री रूंख तळहरी।
प्रात हुऔ पण फेर, पतौ नहिं नाळै पायौ।
मिळियौ नीं मगरियै, काठ रै गळै न आयौ॥
दूजै दिन वा देह, उखणियां गिरजा आंणी।
‘रांम-नांम सत’ राग सोग रै वेस सुणांणी।
पढ़लौ नैड़ा पूग, (वाच थे सकौ) लेख नै।
खुदियोड़ै पाखांण, झाड़कै तळै देखनै॥
इण धर मांय गोद, सीस उणरौ अटकांणौ।
निज किसमत नांमून, जगत में रयौ अजांणौ।
विद्या पखौ वळाय, अेवजी ऊँच घरांणौ।
चिंताड़ी अपणाय, लियौ ज्यूं अपणौ जांणै॥
उदारता अणथग्ग, आतमा हुती ऊजळी।
परमेसर जिण पांण, मावजै रीझ मोकळी।
बिखायतां दी बांट, पूर हमदरदी-आंसू।
मनचायौ इक मिंत, संपज्यौ हरी-कृपा॥
उण रा गुणां उजास, हमैं मत आगै हेरौ।
न को अवगुणां नाळ, डरपणौ निरखौ डेरौ।
(भलै बुरै फळ भोग, धूजती आस प्रमांणौ।)
परमेसर नै पिता तणै अंतस में जांणौ॥