सिणगार पर त्रिभंगी छंद

लोक में सिणगार रौ घणकरौ

अरथ गैंणा-गांठा सूं लेईजै पण जद बात कविता री आवै तद उठै एक रस आय'न ऊभौ व्है जावै, जिणनै 'सिणगार रस'कैवै। अठै संकलित कवितावां सिणगार रै अनेकू पखां में जुड़योड़ी है।

त्रिभंगी छंद1

नायिका नख-सिख वर्णन

सूर्यमल्ल मीसण