सिणगार पर दूहा

लोक में सिणगार रौ घणकरौ

अरथ गैंणा-गांठा सूं लेईजै पण जद बात कविता री आवै तद उठै एक रस आय'न ऊभौ व्है जावै, जिणनै 'सिणगार रस'कैवै। अठै संकलित कवितावां सिणगार रै अनेकू पखां में जुड़योड़ी है।

दूहा13

सिणगार रा दूहा

कुलदीप सिंह इण्डाली

फागण

रेवतदान चारण कल्पित

पहरै वदळै वादळी (बादळी)

चंद्र सिंह बिरकाळी

सावण सांझ सुहावणी (बादळी)

चंद्र सिंह बिरकाळी

चैत

रेवतदान चारण कल्पित

सूरज साजन आवसी (बादळी)

चंद्र सिंह बिरकाळी

सिंणगार रा दूहा

गुमानसिंह शेखावत

सिणगार रा दोहा

सज्जन लाल बैद

तारां छायी रातड़ली

भंवरलाल महरिया 'भंवरो'

सज धज आवै सामनै (बादळी)

चंद्र सिंह बिरकाळी

सिणगार रा दूहा

केशरीलाल स्वामी ‘केशव’

जे म्हैं होती बादळी

बंशीलाल सोलंकी

चैत चुरावै चित्त नै

भागीरथसिंह भाग्य