सिणगार पर संवैया

लोक में सिणगार रौ घणकरौ

अरथ गैंणा-गांठा सूं लेईजै पण जद बात कविता री आवै तद उठै एक रस आय'न ऊभौ व्है जावै, जिणनै 'सिणगार रस'कैवै। अठै संकलित कवितावां सिणगार रै अनेकू पखां में जुड़योड़ी है।

संवैया छंद2

स्यांम-सरीर लसै पट पीत

बुद्धसिंह हाड़ा

अंजन मंजन कैं दृग-रंजन

बुद्धसिंह हाड़ा