सिणगार पर ग़ज़ल

लोक में सिणगार रौ घणकरौ

अरथ गैंणा-गांठा सूं लेईजै पण जद बात कविता री आवै तद उठै एक रस आय'न ऊभौ व्है जावै, जिणनै 'सिणगार रस'कैवै। अठै संकलित कवितावां सिणगार रै अनेकू पखां में जुड़योड़ी है।

ग़ज़ल3

मिली निजर तो म्हैं घबरायो

प्रदीप शर्मा ‘दीप’

किण मद-छकी रै मोह री मनवार है गजल?

रामेश्वर दयाल श्रीमाली