सिणगार पर कवित्त

लोक में सिणगार रौ घणकरौ

अरथ गैंणा-गांठा सूं लेईजै पण जद बात कविता री आवै तद उठै एक रस आय'न ऊभौ व्है जावै, जिणनै 'सिणगार रस'कैवै। अठै संकलित कवितावां सिणगार रै अनेकू पखां में जुड़योड़ी है।

कवित्त5

सज सोळा सिणगार

आशानंद बारहठ

चन्द्रकों चकोर ज्यौं

बुद्धसिंह हाड़ा

अैसी यह रीतिसौ लुभानै

बुद्धसिंह हाड़ा

रोपवि काठ सुगंध

आशानंद बारहठ

प्रीतिके उपायनसौं

बुद्धसिंह हाड़ा