सिणगार पर कवित्त

लोक में सिणगार रौ घणकरौ

अरथ गैंणा-गांठा सूं लेईजै पण जद बात कविता री आवै तद उठै एक रस आय'न ऊभौ व्है जावै, जिणनै 'सिणगार रस'कैवै। अठै संकलित कवितावां सिणगार रै अनेकू पखां में जुड़योड़ी है।

कवित्त2

सज सोळा सिणगार

आशानंद बारहठ

रोपवि काठ सुगंध

आशानंद बारहठ