विजयदान देथा
जगचावा साहित्यकार। लोक-कथावां नै आखर देवण सारू नोबेल पुरस्कार खातर नामांकित। ‘बिज्जी’ उपनाम सूं साहित्य जगत में ओळखाण।
जगचावा साहित्यकार। लोक-कथावां नै आखर देवण सारू नोबेल पुरस्कार खातर नामांकित। ‘बिज्जी’ उपनाम सूं साहित्य जगत में ओळखाण।
”दुनिया में कीं अैड़ी अजोगती बात कोनीं जकौ मिनख पार नीं पटक सकै। विग्यांन रा करार रै आपै तौ मिनख सूरज नै आभा सूं तोड़ जमीं में बूर सकै अर मन करै जित्ता ई आभा में नवा सूरज उछाल सकै।”
”मिनख रै जोग मिनख री असली उमर फगत दोय बरसां री है। मिनखां री गळाई बोलणौ सीखतां ई टाबर मिनखां रा लखण ई सीखणा चालू करदै। अर आं लखणां रै बधापा साथै मिनखीचारौ विणसतौ जावै। इण वास्तै मिनख दोय बरस सूं कम जीवै तौ खोटौ अर वत्तौ जीवै तौ खोटौ। दोय बरस री निरोगी उमर पायलै तौ मिनखां-जूंण सुफळ व्है जावै। पण मिनख तौ हजार बरस जीवण री कांमना राखै।“
”पढ़ो मण भर, लिखो कण कण भर।”
”गिरस्तियां नै समझावण रौ जिम्मौ तौ संतां रौ है, बापड़ा गिरस्ती संतां नै कांईं समझावै!“
”गिरस्तियां सारू तौ आ दुनिया अर औ जमारौ ई सुरग-नरक है। भरपूर धन अर सोनौ हाथ में व्है तौ औ संसार सुरग सूं ईं वत्तौ है अर तोटायला वास्तै नरक सूं ईं वत्तौ दुखदाई है।”
“साचांणी समझ रौ इज डंड व्हिया करै। हर जुग में नासमझ लोग समझण वाळां नै डंड दियौ अर वांनै फांसी रै फंदै लटकाया।“