विजयदान देथा
जगचावा साहित्यकार। लोक-कथावां नै आखर देवण सारू नोबेल पुरस्कार खातर नामांकित। ‘बिज्जी’ उपनाम सूं साहित्य जगत में ओळखाण।
जगचावा साहित्यकार। लोक-कथावां नै आखर देवण सारू नोबेल पुरस्कार खातर नामांकित। ‘बिज्जी’ उपनाम सूं साहित्य जगत में ओळखाण।
उपनाम: बिज्जी
जन्म: 01 Sep 1926 | बोरूंदा,भारत
निधन: 10 Nov 1913
विजयदान देथा रौ जलम 1 सितम्बर 1926 नै जोधपुर जिले रै बोरुंदा गांव में व्हियौ। वांनै वांरा हेताळू ‘बिज्जी’ केयनै बुलवता। साहित्य सूं अनुराग वांरै परिवार में कणुके रूप सामल हौ। वांरी सुरुआती भणाई जैतारण में व्ही अर आगै री भणाई जसवंत कॉलेज, जोधपुर में संभव व्ही। जसवंत कॉलेज में पढता थकां ई वांरौ एक हिंदी कविता संग्रै ‘उषा’ नांव सूं प्रकासित व्हियौ। मूळ रूप सूं कॉलेज रै दिनां में ई वांरौ साहित्य सूं अनुराग बधियौ। इणी’ज समै वां सरतचन्द्र, एन्तोंन चेखव, रविन्द्रनाथ ठाकुर अर रूसी साहित्य रौ जब्बरौ अध्ययन करियौ। बिज्जी आपरै लेखन री सुरुआत हिंदी सूं करी। जोधपुर सूं निकळण वाळै साप्ताहिक ‘ज्वाला’ में वांरा कॉलम छप्या करता।
1959 सूं बीज्जी रै लेखन रौ फांटौ कै विचार रौ चीलौ अलग व्है जावै;जद वै आपरै गाँव बोरुन्दा चल्या जावै अर भाषा रौ माध्यम आपरी मायड़ भाषा नै चुणै। बिज्जी राजस्थान रा लोक विद्वान कोमल कोठारी साथै मिल’र बोरुन्दा में रूपायन संस्थान री थरपना करी। अठै वां लोक साहित्य रौ चावौ अध्ययन करियौ अर ‘बातां री फुलवारी’ उण प्रयोग रौ फळ है। ‘लोक-संस्कृति’, ‘प्रेरणा’ पत्रिकावां रा वै संपादक पण रैया। बिज्जी बोरुन्दा में रैवतां थका लोककथावां रौ पुन:सिरजण सरू कियौ। आं लोककथावां नै वां ‘बातां री फुलवारी’ नांव सूं 14 जिल्द में प्रकासित करवाई। बरस 1974 में पहली वार ‘दीठ’ (तेजसिंह जोधा सम्पादित) पत्रिका में वांरी तीन राजस्थानी कहाणियाँ ‘अलेखूं हिटलर’, राजीनांवौ अर ‘फाटक’ नांव सूं छपी। पण बिज्जी री ख्याति बातां री फुलवारी सूं व्ही। हिंदी संसार में बरस 1979 में वांरौ कथा-संग्रै ‘दुविधा और अन्य कहानियां’ अनुवाद हुय’र पाठकां साम्ही आयौ।
विजयदान देथा रौ रचना-संसार हरमेस सामंतवाद रै प्रतिरोध में ऊभौ लखावै। वांरी रचनावां में एक गडरियो ई राजा सूं खारी मसकरी कर सकै। वां आपरै लोक में रचियोड़ी-बसियोड़ी धारणावां नै तोड़ी अर समाज री विडरूपता नै आपरै रचना-करम में परगट कीन्ही। ‘रूंख’, ‘अलेखूं हिटलर’, ‘बातां री फुलवारी’, ‘तीडो राव’ आद वांरी राजस्थानी पोथियां प्रकासित है। ‘बातों की बगिया’ ( बातां री फुलवारी का अनुवाद), ‘बापू के तीन हत्यारे’ (आलोचना), ‘साहित्य और समाज (निबंध), ‘सपनप्रिया’, ‘अन्तराल’, चौधरायन की चतुराई’ (कहाणी संग्रै) ‘महामिलन’, त्रिवेणी (उपन्यास) आद वांरी टाळवी पोथियां हिंदी में उल्था व्हियोड़ी है। बिज्जी री रचनावां अलेखूं भासावां में उल्था व्हैती रैयी।
वांनै अलेखूं सम्मान मिळिया जिणमें केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय भाषा पुरस्कार, बिहारी पुरस्कार जेड़ा सम्मान सामिल है। बरस 2007 में पदम् श्री अर 2012 में राजस्थान रत्न सूं ई बिज्जी आदरीज्या।
10 नवम्बर 2013 नै विजयदान देथा सौ बरस कर ग्या।