चंद्र सिंह बिरकाळी 1912-1992 bikaner सिरैनांव कवि। 'लू' अर 'बादळी' जेड़ी राजस्थानी साहित्य री कालजयी पोथियाँ रा सिरजक।
बीकाणै री भोम म्हानै प्यारी लागै जी! छिण छिण सोहै छांटड़ल्यां री छोळ घणै ठाठ सूं खेवण लाग्यो जगती सूं अब नहीं डरूं मैं जीवण नद यूं बहतो जावै दूधै भरी कटोरी लोरी - जाग जाग लाडेसर जाग! मैं तो एक बड़ो अलबेलो मनभावण बसंत आयो री मेरो दम तो घुटतो जावै सखीरी सपनै में सैण जगाई