Anjas
चंद्र सिंह बिरकाळी

चंद्र सिंह बिरकाळी

  • 1912-1992
  • bikaner

सिरैनांव कवि। 'लू' अर 'बादळी' जेड़ी राजस्थानी साहित्य री कालजयी पोथियाँ रा सिरजक।

चंद्र सिंह बिरकाळी रौ परिचय

जन्म: नोहर,भारत

आधुनिक राजस्थानी भासा रा लूंठा साहित्यकार, प्रकृति चित्रण रा सिरमौर कवि चन्द्रसिंह बिरकाळी रौ जलम हनुमानगढ जिलै री नोहर तैसील रै बिरकाळी गांव में हुयौ। चन्द्रसिंह बिरकाळी री सरुआती भणाई आपरै गांव में  इज हुयी। उण पछै री पढाई बीकानेर रै डूंगर महाविद्यालय में हुई। भणाई नै नौकरी रौ आधार नीं बणायौ। केई बरसां तांई राजनीति करी, पछै साहित्य कानी पग भर्‌या। बरस 1914 में ‘बादळी’ छप’र पाठकां साम्ही आयी अर इणरौ खूब स्वागत व्हियौ। ‘बादळी’, ‘लू’, ‘बाळसाद’, ‘कहमुकरणी’, ‘सांझ’, ‘बसंत’, डांफर-गाथा, चांदणी, बातड़ल्यां, बाड़ आद चन्द्रसिंह री प्रकाशित पोथियाँ है। इणरै अलावा कालिदास रै ‘रघुवंश’ अर ‘मेघदूत’ रा राजस्थानी भासा में अनुवाद पण वां कर्‌या। वां प्राकृत भासा रै महान कवि हाल री चावी पोथी ‘गाथा सप्तशती’ रौ राजस्थानी भासा में अनुवाद कर्‌यौ अर उणनै ‘काळजै री कोर’ नांव दियौ। चन्द्रसिंह री लोकचावी पोथ्यां ‘बादळी’ अर ‘लू’ रौ प्रो. इन्द्रकुमार शर्मा अंग्रेजी भासा में अनुवाद कर्‌यौ। वांरी पोथी ‘बादळी’ पर नागरी प्रचारिणी सभा, काशी सूं ‘रत्नाकर’ पुरस्कार अर राष्ट्रीय स्तर रौ ‘बलदेवदास पदक’ भी मिल्यौ। राजस्थान री प्रकृति इणां रै काव्य रौ मुख्य विसै रैयो। ‘बादळी’ काव्य में चौमासै री रुत रौ घणो भावपूरण वरणन है। कुदरत रै पळ-पळ मांय रूप बदळण री रीत रा मोहक चित्राम मांडीज्या है। 'लू’ री झळ सूं दाझ्योड़ा पसु-पांखी, वनस्पति अर मिनख दीसै। इण भांत ‘बसन्त’ में बसन्त रुत रौ तो ‘डांफर’ में सरद रुत रौ चित्रण हुयौ है। वां ‘बाळसाद’ पोथी में आपरै टाबरपणै री काव्य अर गद्य रचनावां सामल करी है। चन्द्रसिंह रै काव्य री अेक विसेसता आ ई है कै इणां कविता नैं पारंपरिक रूढिबद्ध, स्थूल अर सप्रयास होवण वाळै रूपक-बंधणां सूं मुगत कर कथन में सहजता लावण रो जतन कर्‌यौ है। पारंपरिक दूहा छंद मांय अनुभूतियां नै घणी बारीकी सूं उतार’र जूनै छंद में नूंवी संभावना जोयी है। कवि चन्द्रसिंह लोक-हियै री अनुभूति री आपरी गैरी पिछाण अर आंचळिकता सागै कथ्य नै साम्हीं राख्यौ। 14 सितंबर, 1992 नै चन्द्रसिंह बिरकाळी सौ बरस कर ग्या।