(अेक)

म्हारी भासा में न्हं उगै सूरज
कढ़ै छै तावड़ौ

म्हारी भासा में न्हं ढळै संझ्यां
दिन
धम्म सूं पड़ जातौ रात कै सिराणै

म्हारी भासा में न्हं होवै रात
खेत में हमेस गळै छै पगथळ्यां

म्हारी भासा में न्हं होवै
कोई हाकम

म्हारी भासा में होवै छै बस
किरसाण।

 

(दो)

दुख होवै
या फैर सुख

हमेस लैरां
म्हूं अर म्हारी भासा

पांव में घुस्यौ छै जै धंसूळ
वूं बी
म्हारी भासा का चीप्या सूं ई
कढ़ैगो बारै

म्हारी भासा ढाल बी छै
अर तलवार बी

फाटी कमीज़ की तुरपाई कै लेखै
सुईं बी छै म्हारी भासा

म्हारी भासा का हाथ में
कदी न्हं र्ही दोगली कटार।

 

(तीन)

म्हारी भासा अर म्हूं
नरळौ छौ ई कद

आंख सूं झरै छै आंसू
कान सूं बहवै छै राद

यां म्हारी भासा की ज़ूम छै

जै जस की तस पढ़ल्यै
आंसूवां की लिखावट

राद भरिया कान में बी
मसरी की नांई घुळै छै
म्हारी भासा। 

(च्यार)

म्हारै गांव
म्हारी भासा में ई बोलै छै मोर्यां

म्हारै गांव
म्हारी भासा में ई होवै छै रोवणौ

म्हारै गांव
म्हारी भासा में ई कहरावै छै डोकरो

म्हारै गांव
म्हारी भासा में ई हांसै-मुळकै छै
म्हारी कविता की धरियाणी।

(पांच)

म्हारी भासा
अन्याव कै साम्हीं उभी रेवै सदा
छाती ताण्या

म्हारी भासा
ठंड सूं धूजता मजूर कै लेखै
तताई भर्यौ दुसाळौ

म्हारी भासा
बगत की सैंण समझै छै चौखी तरां

खेत बीचै
मचान सूं दकाल सुण’र
उड़ी चड़्यां कौ डाबौ

बावड़्यातौ फेरूं चुगबा
म्हारी भासा कै भरोसै।

स्रोत
  • सिरजक : ओम नागर ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोडी़
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