आओ,

म्हारो घर दिखाऊं

जिकै नै फोड़'र अब दूसर बणांऊं

क्यूं कै

अब इण रो जाबक जबाब है।

हरेक कड़ी रै नीचे

लगायोड़ै टग सूं लागै—

भीसम री भांत अेक जोधो है

जिको कोई परण सूं बंध्यो

आपरा पिराण कोनी छोड सकै।

फेर मायत री भांत

म्हारी चिंता करै

म्हारो सिर पंळूसै।

लारली दियाळी नै

लालड़ी माटी अर गोबर रै गारै सूं

इस्यो सींगरयो

जाणै कोई

कोडायलो बराती हुवै।

अबकै चौमासै पछै

इण री गत इसी होगी

जाणै सै'र री बरात में

कोई सीधो-सो देहाती होवै।

लीप्योड़ो तो

जाणै मा नैं

मुळक'र कैवै हो—

तूं दुनिया री सैं सूं तकड़ी दरजी है।

पण

घर गेरती बरियां

म्हारी गत

बीमारी में दुख पांवतै मायत नै

गीता रो अध्याय सुणावण री-सी ही।

सै सूं पैली कस्सी

मंडेरी री ईंट पर पड़ी

जिकी फूटती- फूटती

आंगण री मुट्ठी में

बेल रो अेक बीज दे'गी।

इणरे साथ

म्हारी निजरां सामी

कई चौमासा अर झड़ी

मंडेरी माथै

बेल बण पसरग्या।

पण

अचाणचक म्हैं देख्यो के

दूर बैठी दादी री आंख्यां सूं

अेक आंसू निसरयो है।

महनै लाग्यो—

घर से विदाई सारू गायोड़ो

सैं सूं तकड़ो मौन गीत है।

म्हे राजी-राजी-सा

अणमणा उदास-सा

घर सूं मकान तक री जातरा में

भोत दुख पाया।

साच्याणी म्हे

नैं फोड़नो कोनी चावै हा।

पण कांई करां,

भीतां

नीचै-नीचै सूं

पैली कळी

फेर गारो-माटी

अर फेर

पुस्ती तकात सूं नटगी।

रातूं

कड़ियां रा कटका निसरता

अर टाबर डरता।

डोरा-डांडा सूं

भूतणी तो कांई ठाह भाज ज्यावै

पण

अेक अेक कड़ी री

दो-दो धोबा दीमक कियां मरै?

कटका जादा निसरै बिंया

म्हारी धीरज री हद पर

धरम अर देवां पर भरोसे रा फूल

हिराळ मारण लागी ज्यावै।

नेड़ै-तेड़ै तो बात कांई करां

दूर-दराज रै देवां री

सवामणी तकात कबूलीज्यै।

बखारी सूनी अर

आखां रा ठाटिया भरग्या

पण

घर पार पड़ती कोनी दीसै ही।

स्रोत
  • सिरजक : विनोद स्वामी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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