आओ म्हारो घर दिखाऊं बाई भींत चालूं अे बाई, छियां ढळगी गरीबी में कोनी गिणीजै घर कविता म्हारो गाम नाळ ओट फगत बाबै री कब्जी कोनी टूटी सुपना