आज पंडतजी का छोटा बेटा को बी सगपण होग्यौ। ब्याई सौ बीघा नहरी जमीं को धणी। दो बेटा अर दो बेट्यां पाछै या अेक बेटी ओर बची छी। जीं की बात ले’र पंडतजी कै बारणै आंण हाकौ पाड़्यौ।

पंडतजी को बेटौ अब मांग्या सूं मांगीलाल बणग्यौ छौ। सरकारी मदरसा में चपड़ासी की नौकरी तौ पूरी करै छौ पण तणखा हाल आधी ही मिलै छी। यूं वा बी सात-साढा सात सौ छी। मंदर की सेवा-पूजा, धजा-सोदा अर डोहळी की कमाई ऊपर सूं। बडौ बेटौ जंगळात में होग्यौ छौ। तनखा की लेरां ऊपर की कमाई बी। नौकरी लागतां नाळौ जा बस्यौ छौ। फावणा की नांई आतौ। हँस-बोल’र चल्यौ जातौ।

छोटा की नौकरी लाग्यां सात-आठ मईना बीत्या कै छोर्‌यां हाळा फरबा लागग्या। पंडत-पंडतांणी की बी नूराण्यां बदळगी। खेड़्यां पै सैचंदण माचबा की घड़ी आई छी। नै तौ तंत कांई छौ। ढांडा ठोर की साळ अर भस को भसोरौ छोड़द्यां तौ घर का नांव पै अेक घर अर अेक अगडाळ्या की पूंजी छी। अब दो मनख आ’र बैठबा लाग्या तौ पंडतजी नैं दरीखानौ जस्यौ लागतौ। मान-मनवा को बी खरचौ बध्यौ। वै लोगां नैं बार-बार समझाता कै मांगीलाल की नौकरी पक्की छै। छै मईनां पाछै तौ राज उस्यां बीं नैं हटा सकै। थोड़ दन तनखा को घोटौ छै। फेर पूरम पूर बिघन दूर।

ब्याई या बात बना बतायां बी जांणै छौ। जदी तौ ईं सुदांमा की झूंपड़ी को गोबर सूंघणी पड़ग्यौ। राज की नौकरी लाडी फूत्यां को खेल थोड़ौ छै। लोंठा भाग हाळा पावै छै राज की नौकरी। अर फेर बामणां कै ताई? अजी, राम भजो।

मांगीलाल तो राज को होतां जस्यां हीरौ होग्यौ छौ हीरौ। अस्यौ हीरौ, ज्ये घण की द्या बी नै फूटै। सुभव की बी तारीफ छी। लागै बी रूपाळौ छौ। लागबा में ईं घर पै अेक पण लागै छी, कै पंडतांणी नैं बेटा जण्या दो, पण बेट्यां जण दी छः। परण तौ सब गी छी पण अेक अेक बाप कै घरां बणी रहती। अेक जाती फैली दूसरी धमकती। बार-थ्वार पै तौ च्यार-च्यार पांच-पांच भेळी हो जाती। सकर्‌यांत की लावण्यां पटकबा जाती तौ छोरा छोर्‌यां सूं गाडी भर जाती। लुगायां पगां-पगां जाती।

पंडतजी को पाड़ोसी लछमण छौ तौ बामण अर खातौ-पीतौ पण पंडत का दोनूं बेटा की सरकारी नौकर्‌यां नै का पेट में पांणी न्हाक्यौ। यो दांणा मांगण्यो दो दन पाछै मूंछ्यां मरोड़ैगौ। लछमण या कस्यां बरदास करतौ। मौकौ मलतां अेक दन ब्याई जा फफेड़्यां, “कस्यां बावळ्यां बण र्‌या छौ। फूल जसी बेटी कुआ में न्हाकर्‌या छौ। ईं घर पै तौ माई का नांव पे बेट्यां राज करै छै। थांरी छोरी बांदी बण’र जमारौ काटैगी। अस्यौ कांई देख्यौ थांनैं?”

पण ब्याई बावळ्यौ कोई नै छौ। गैलसप्पै हौ तौ अतना छोरा-छोरी कस्यां बडा बी कर लेतौ अर परणा बी देतौ, ऊं की समझ जादा ऊंडी अर पक्की छी। मांगीलाल राज को नौकर अर पंडत मर्‌यां पाछै टापरा को अकेलौ धणी। कांम करौ भल मत करौ। तनखा बी पक्की अर पेनसन बी पक्की।

पंडत अतना मोतबर मनख देख’र कांई उसका कर लेतौ। ऊं नैं तौ डील का बोदा फागड़ी अंगोछा की सरम री छी। अतनौ बोल खड्यौ, “म्हंसूं आपकौ सगपण कस्यां सदैगौ?”

“अस्यां क्यूं बच्यारौ छौ। बडा तौ आप छौ। माया तौ फरती छांवळी छै। आपका कुळ में कसी खोट छै। ज्यात की जाजम पै सब बराबर छां। भाग बडौ छै। आपण तौ नमत छां। आप तौ चरणां में सरणौ द्यौ।”

पंडत तौ बापड़ौ पांणी-पांणी होग्यौ। हामळ भरतां रोळी में बी पांणी पड़ग्यौ अर मांगीलालजी को तलक होग्यौ।

तलक हौ यो तौ ब्याव होणौ छौ। ब्याव को घणौ भार तौ गांव नै फोरौ कर द्यौ। अब बात आई लाडी का जेवरां की। नाक-कांन लाडी हाळा भर देगा। अब अठी सूं कांई करणौ। जेवर सूं तौ घर की माम दीखै छै।

सूना को झोळ छड़ी चांदी की राखड़ी तौ सदज्यागी। यूं बी अब राखड़्यां कुण पहरै छै। कड़्यां, नेवस्यां, आवंळा का जमांना बदळग्या तौ पंडत भारी खरचै सूं ओर बचग्यौ। अब तौ झांझर-जोर बी पेट्यां में जा पड़्या। पायजेब अर बीछ्या को रिवाज आग्यौ। पण अस्या घर पै तोरण मरै तौ सोना को जेवर तौ होणौ होणौ।

पंडत-पंडतांणी नैं बच्यार कर’र वा खांनदांनी बजंटी जा उजळाई, जीं नैं बडा बेटा का ब्याव की बी लाज राखी छी। बाप-दादां का सस्ताई का जमांना की या बजंटी पंडतांणी की सासू नै घड़ाई छी। घड़ायां पाछै पूरा चाळीस बरस तौ वा गळा में लटकायां फरी। सासू मरी जद जा’र बजंटी पंडतांणी कै हाथ लागी।

फेर बडौ बेटौ परण्यौ जद ताईं ब्याव का रंग-ढंग घणा बदळग्या छा। पंडतांणी को ब्याव तौ दस सेर चून की बाट्यां का मैंडा में होग्यौ छौ। बेटा का ब्याव में नीमड़ी कर कराळ्या में मरद-बायरां की पंगतां लागी। तेल का बूंडा की बज्याई भाड़ा का दो-दो गैस आया। बैंड बाजौ बी आयौ। मोट्यार छोरा बी हींजड़ां की नांईं नाच्या अर लाडी नै बी मूंढौ उघाड़्यां लाडा कै बरमाळा पटकी। कोई कर बी कांई लेतौ। जमांनौ अस्यौ आग्यौ छौ।

पंडतांणी की वा बजंटी बडी लाडी कै कांम आई। लाडी घर में लेतां पंडतांणी नैं बजंटी खुलवा बी ली। जांणै छीं कै ईं बगत खुलगी तौ खुलगी। पंडतांणी नैं झंवरौ फेर्‌यौ, “लाग को घर छै लाडी। ईं गांव में चोरड़ा तौ आंख्यां को काजळ खाडै छैं गहणा-गांठा तौ फैरबौ पा समझ। या बजंटी म्हारा बाप की मजबूत पेटी में जा पटकूंगी।”

बडी लाडी बजंटी खोल’र भरणा तौ गी पण सपातर बेटा नैं जळताई नै फैलबा दी, “सारा घर में या बजंटी घर की अेकली पूंजी छै। भूखां मरता बडा होयां छां। भगवांन नैं सुण बी ली ज्यौ रुजक-रोटी सूं लागग्या। अब म्हारी कमाई सूं साल की एक बजंटी घड़ा। खाबा फैरबा पाछै खरचा कांईं छै। पूरी जमीं छोटा नैं संभळा’र म्हूं तौ बरी जम्मा होग्यौ। म्हारी जमीं बी संभाळ अर मां-बाप नैं बी संभाळ। अब थांसूं लेणौ, थांनैं देणौ। बडा कारज माथै पड़्या की ओर बात छै। मनैं तौ अतनी सळी बातां करली। समजी कै नै समजी।”

बडी कस्यां नै समजती। समजती तौ मुळक’र कस्यां आंख्यां मींच लेती।

अब छोटौ परण्यौ तौ वा बजंटी कांम आई। दो तोळा कांईं फोरी-पातळी बात छी? बात सदगी अर फेरा पड़ग्या। ईं बगत पंडतांणी नै बी बजंटी कुसकावा की जादा उतावळ नै बरती। अब दोन्यूं बेटा परणग्या छा। बेट्यां परण गी छी।

अब छोटी बजंटी फैर्‌यां मुळकती फरती। धणी राज में नौकर अर गळा में बजंटी। ब्याव का चमकदार सबाका अर दल्ली की चप्पलां। नेल पालिस बी लगा ले छी। हाल ब्याव को खुसबूदार पावडर बी नै बीत्यौ छौ। रूप अर सणंगर मळ’र पाड़ोसण्यां का काळज्या सळगा देतौ।

पण घर-गरस्ती का उतार-चढाव तौ आणां छा। थोड़ा दनां पाछै कांणा तौ कोई नजर लागी, कांण डाकण भूत को वार लाग्यौ, कांणी सीत गरम की तासीर पड़गी, ज्ये छोटी को माथौ भड़क्यौ तौ रात-दन भड़कबा लागग्यौ।

दवा-दारू बी कर्‌या। नर्स-डागदर बी टोळ्या। देवी-देवतां का गीत बी कराया। थांनक बी ढेक्या अर जोत मंडाई। पण माथौ भड़कतौ नै थम्यौ। अब ब्याई कै तांईं खबर करबौ जरूरी होग्यौ तौ खबर करी। ब्याई आतां घणौ काळौ पीळौ हुयौ, “यां का डाकण भूत का रांड रोवणा तौ छोरी नै मार न्हाकता। अब या म्हारी लेरां जावैगी।”

काचा गेला की खटाळा मोटर आबा हाळी छी। हाथ्यूं-हाथ त्यारां होगी। पंडत नैं सोची कै इलाज का खरचा सूं बच्या। अतनौ ठसकौ राखण’र ले जार्‌यौ छै तौ करैगौ खरचौ। ऊं की बी तौ बेटी छै।

छोटी बाप की ले’र मोटर में जा बैठी। बजंटी सासू की पेटी में धरी रैगी। बीमारी की चन्ता में बजंटी पै ध्यान कुण को जातौ।

छोटी को इलाज बी लांबौ चाल्यौ। रुपयां को बी नासरड़्यौ होग्यौ। अतनी तौ होई ज्ये होई पण ब्याई कै भरणाटौ ईं बात को आयौ कै ज्वांई वी संभाळ पूछबा नै झांक्यौ। सासू-सुसरा की तो बात कांई करां।”

पंडत बी नै तौ मलबा ग्यौ अर नै समाचार मंगाया। डरपर्‌या छौ कै खरचौ नै मांग लै।

इलाज चाल्यौ तौ छोटी कै नीरांत बी दीखी। वा धीरां-धीरां जंत होगी।

छोटी की बीमारी मटबा की खबर अेक दिन पूगगी। छीज्यै पूगी। पंडत-पंडतांणी नैं बच्यार कर्‌यौ कै अब लाडी कस्यां घरां आवै? अक्कल भरणा खागी। अब कस्या मूंढा सूं लेबा जाता। पंडतांणी नैं मांगीलाल सूं सासरै जाबा की बात चलाई तौ बी भरणा ग्यौ, “बीमार छी जद तौ जाबा नै द्यौ, अब जांणी होवै तौ तूं जा।”

अब ज्यात का दो स्याणा मनख त्यार कर्‌या। वां में अेक ब्याई को काकी ससरौ छौ। वां नैं जा’र आडी-ऊंळी समजाई, “सुणी भगवांन नैं, ज्ये छोरी न्हा-धो’र खड़ी होगी। तगदीर का फेर छै। बुखौ तौ राजा नळ नैं बी झेलणौ पड़्यौ छौ। पण थांनैं हीमत घणी करी। अब ईं नैं ईं कै घरां पूगाओ।”

ब्याई कस्यौ काची गोळ्यां खेल्यौ छौ। बोल्यौ, “कस्यां पूगा द्यूं? वां का घरां जा’र नाक रगडू कै या संभाळौ। वै आ’र बी चाल्या यां दना कै भाई मरै छै ज्यै छै। वां नैं तौ नोट प्यारा। अर नोट मनैं कस्या दुसमण लागै छै? सात हजार फुंक ग्या काका सा’ब! अब आप जा’र फरमा दीज्यौ कै सात हजार चुका जावै अर वां को मनख ले जावै। नै तौ वांकी राधा नैं याद करै। म्हारी बंडा में छोरी कै लेखै घणौ नाज छै।”

फावणा रोट्यां जीम’र बावड़ग्या।

पंडतांणी तौ सुणतां दमनी होगी। ऊं नैं तौ घर-आंगणा लीप राख्या छा। लाडी आतां देवी-देवतां का गीत कराती। पण ईं बात पै पंडतांणी खुद की अक्कल पै घणी फूली कै बजंटी घरां धरी रैगी छी। ब्याई इलाज का खरचा पेटै बजंटी कुसका लेतौ तौ कांई कर लेता?

ब्याई दना फैली जांणग्यौ छौ कै सासु बजंटी नैं ढीली नै छोडै। छोरी कै सासरै का नांव को यो तौ आसरौ छौ। जद छोटी नै या बात ओर बताई कै या बजंटी ऊं की जेठ्याणी का ब्याव में घड़ाई छी तौ ब्याई तौ त्वांळौ खाग्यौ, अतनी धोकाबाजी। रोस तौ अतनौ आयौ कै अबार बजंटी हाथ में होंती तौ सांच्याई रखांण लेतौ। फेर पंडतांणी की अक्कल पै थूंक्यौ, “मरबा चाली पण अक्कल को मैल नै छूट्यौ। कन्यादांन तौ गऊदांन सूं बी ऊंची बात छै। खाबा कै लेखै मनैं छोरी को घर मलतौ?”

छोटी तौ डोकरी पै कचकच्यां खा री छी, “म्हारा बाप नैं कद मांगी छी बजंटी? अर राजी सूं छडाई तौ असी बेईमानी क्यूं करी? अब तौ होग्या बजंटी का दो टुकड़ा। वै बी डोकरी कै मर्‌यां पाछै। जीवतां या कसी ढीटी देबा हाळी छै? बैरण छै बैरण। अब खाटळौ पकड़ै जीं दन फकवा लीज्यै गू-मूत! आद-अेरणा करै म्हारी जूती।”

पण बडा खैग्या छै कै जनावर ठांण में अर बायर घर में सुवावै छै। अब तौ सासरौ छोटी को घर छौ, ज्ये आगळी मनवार में ब्याई सूंळौ आग्यौ अर छोटी एक दन सासरै आगी। मांगीलाल नैं आडी-ऊंळी लगा’र बात बी संभाळ ली, पण छोटी का पेट में तौ बजंटी खदबदा री छी। ऊं नैं रोटी पोतां-पोतां पंडतांणी सूं बात चलाई, “भाईजी बजंटी की पूछर्‌या छा।”

“खै देती, घरां धरी छै।”

“घरां धरी कसी दूध दे री छै? गळा में घालती तौ लोग-बाग जांणता कै भाई

सासरा की छै।”

पंडतांणी समज गी कै ब्याई की बजंटी पै नीत छै। छोरी भंगरा’र खंदाई छै। वा ठांगळी उठा’र गोबर थापबा नसरगी।

छोटी बी समज गी कै डोकरी का मन में पाप छै। या बजंटी देणी। अब वा मांगीलाल कै पाछै पड़गी। सोतां-जागतां बजंटी की बात। मांगीलाल अेक दन आकळ्यौ हो’र माई सूं बोल्यौ, “तूं दे कानै देरी ईं की बजंटी? सोतां-जागतां रोज म्हारौ जीव खावै छै।”

“कस्यां दे द्यूं बजंटी वा कांईं का बाप नैं घड़ाई छै। अर ऊं पै बडी को बी तौ हक छै।”

“तौ फेर न्याव में बजंटी ले जा’र नाक ऊंची क्यूं रखाणी? अब तौ अेक कै तांईं तौ या दै अर दूसरी कै नुई घड़ा।”

“कस्यौ सोनौ धर्‌यौ छै ज्ये घड़ाऊं? थारा बाप सूं मांग।”

“नै देणी होवै स्याफ नट जा।”

“हां तौ आज नटगी। हाल यां नुई छोर्‌यां को कांई भरोसौ। बजंटी अब तौ ऊंकी छै ज्ये म्हारी सेवा करैगी।”

छोटी नैं समज ली कै अब हौ यो पाप उजागर। रोस बी घणौ आयौ। फेर अतना छाती-माथ कूट्या ज्ये दूसरा दन सूं छूला-फरांडा नाळा-नाळा होग्या। मांगीलाल नैं घणी समजाई पण अेक ज्वाब मल्यौ, “नै सेवा करणी, नै बजंटी लैणी। नै पचै तौ बाप कै छोड्याऔ।”

अब पंडत कै घरां छूला दो होग्या। बात घणी ढांकी पण छोटा-सा गांव में कतनी छपी रैती? दो घरां में सूं धूंधाड़ौ उठतौ अर चूंतरी पै दो-दो भगोन्यां नाळी-नाळी मंजती तौ कुण नै जांणतौ?

नाळा-नाळा मनख्यां में नाळी-नाळी बातां चाली, “पंडत खुद की चालाकी को फळ भोग र्‌यौ छै। लाडी की बजंटी में बी घरम्मारी। जसी करी उसी भोग।”

“छोरी घणी लड़ोकणी छै। बजंटी ले लेगी तौ बाप नै जा संभळावगी। बाप बीमारी को खरचौ वसूलैगौ।”

“ब्याई घणी ऊंची चीज छै। ऊं नैं बेटी कै तांईं नाळी होबा की पाटी फडाई छै। वा तौ बायनौ हेर री छी।”

“पण या बात बी तो गलत छै। दोन्यूं बुआं सासरा नै तौ नागतणी राखी। अस्या सासू-सुसरा पै मन बी कस्यां बढै।”

लोग तौ मांगीलाल कै बी ठोसा देता, “कांई बी होई। अब टापरौ तौ आगै-पाछै थारौ छै। डोकरा-डोकर्‌यां का हाथ-पग कतना चाल लेगा? वां नैं बेटा-बुवां को कांई सुख मल्यौ? खोड़ला-कबाड़ला कस्या बी छै। छै तौ मां-बाप।”

मांगीलाल नैं बी सोची कै अब कांन कांई तौ करां। तौ छोटी नै अेक दन मोटर में बठाण’र सहर में लेग्यौ। सनीमौ दखायौ। चंबल गार्डन की सैर कराई। आइसक्रीम को स्वाद चखायौ। फेर बडा तळाव का पगत्यां पै बठाण’र सारी ऊंच-नीच समजाई।

“अब देख दादा की नौकरी तौ दूरै लागी। तौ उंठी को होग्यौ। म्हारी नौकरी तौ गांव की गांव में। जा’र बी कठी जाऊं?”

छोटी नै हांमळ भर दी। बात सांची छी।

“अब गांव में रैतां नाळौ छूलौ कर्‌यौ तौ गांव का मनख कड़कोल्या दे छै।”

“तौ फेर सासूजी म्हारी बजंटी का नै सूपै? म्हूं तौ नाळी हो’र बी रोज वां की सेवा करूं छूं। म्हारी धरम की मा छै। म्हूं कांई अतनी बी नै समजूं।”

“या होई नै समजदार बायर जसी बात। अब अतनी ओर समझ लै कै वा कंगाली में तौ पैदा होई अर कंगाली में बडी होई। ऊं नै चांदी का बीछ्या बी भगवांन सूं बडा लागै छै। बजंटी तौ ओर ऊपरै की चीज छै। अब आपण तब करबा कै भाग होता जा र्‌यां छां। कोई की बी आस मत करै। म्हूं छूं नै।”

“तौ अब म्हसूं कांई करबा की खै र्‌या छौ?”

“तौ सुण! फैली तौ या सुण कै म्हूं कांई करबा की सोच र्‌यौ छूं। झगड़म झट्टी सूं तौ बात उळझैगी। दादा-भाभी सूं खै द्यूंगौ कै बजंटी की आधी रकम थां भरौ तौ बजंटी थांकी, न्हैं तौ आधी रकम म्हसूं संभाळौ अर बजंटी म्हारी। पण या बात घणै आगै की छै। यां दना बजंटी की बात बी नै करणी।”

“म्हूं तौ थांकी सीख मुजब त्यार छूं। म्हारी असली बजंटी तौ थां छौ।”

ठंडी बाळ का झकोळा अर मांगीलाल का मीठा बोल छोटी नैं घणै ऊंडै ले ग्या। ऊं की आंख्यां मचगी। डूबता सूरज का झूंझरक्या में बजंटी कांणा खां घुळगी।

छोटी नैं सोड़ै भींच’र मांगीलाल नैं बात आगै सरकाई, “अब आगै की सुण! बोराजी की पांती में सोयाबीन डट’र नपज्यौ छै। तीन बोरी बीघा तौ मांन लै। फेर पंदरा मण बीघा गहूं की दूजी फसल। आखातीज का सवां कै फैली थारा गळा में दो तोळा को नया डिजाइन को हार नै पटक द्यूं तौ नांव मांगीलाल मत खीजै। हाथां की कमाई में कोई कांई कर लेगौ? बात बी चाली तौ खैद्यूंगौ कै थांका कर्‌या करम गंगाजी पटक्या छै अर कस्यौ सट्टौ लगायौ छै। समझौ कै घर में सोना की अेक रकम और बदी। घर की जळताई खडै तौ गांव की बातां बी सेळी पड़ै।”

छोटी को मन तळाव की लहरां की ले’र मचोळा खा र्‌यौ छौ। वा तौ मांगीलाल की छाती कै चपक’र लैलाटा होगी। बजंटी टूक हो’र बखरगी।

“अतनी बातां को सार यो छै कै घरां चालतां ईं थारौ नजाळौ चूल्हौ समेट लीज्यै। आगळा दन आपणा छै। साल वार दन ऊजळा होता चली ज्यागा। बखर्‌यार घर नैं अस्यौ अेक-मेक कर दै, ज्ये लोग आंख्यां देखै तौ बळ्यां मरै। भुजा की जूम सूं बडौ ओर कुण छै?”

छोटी का मन की सारी दबद्या बरबूळ्या की नांईं उडगी। बोलबा में अब बच्यौ बी कांई छौ। मंदरा-मंदरा अतना बोल फूट्या, “अब या बी कोई खैबा की बात छै?”

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : शान्ति भारद्वाज ‘राकेश’ ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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