संसार पर उद्धरण

‘संसरति इति संसारः’—अर्थात

जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

उद्धरण3

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”दुनिया में कीं अैड़ी अजोगती बात कोनीं जकौ मिनख पार नीं पटक सकै। विग्यांन रा करार रै आपै तौ मिनख सूरज नै आभा सूं तोड़ जमीं में बूर सकै अर मन करै जित्ता आभा में नवा सूरज उछाल सकै।”

विजयदान देथा
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”गिरस्तियां सारू तौ दुनिया अर जमारौ सुरग-नरक है। भरपूर धन अर सोनौ हाथ में व्है तौ संसार सुरग सूं ईं वत्तौ है अर तोटायला वास्तै नरक सूं ईं वत्तौ दुखदाई है।”

विजयदान देथा
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“दुनिया री सगळी संपत साटै बीत्योड़ौ छिण पाछौ हाथै नीं लागै सो नीं लागै”

विजयदान देथा