संसार पर

‘संसरति इति संसारः’—अर्थात

जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

छंद मतगयंद1

शक्ति स्तवन

सुआसेवक कुलदीप चारण