संसार पर सोरठा

‘संसरति इति संसारः’—अर्थात

जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

सोरठा8

धन, तन, गिटसी धाम

साह मोहनराज

किण विध उतराँ पार

साह मोहनराज

भूंडो अपणो भाग

साह मोहनराज

झूठो है जग जाळ

साह मोहनराज

राखै जिणनै राम

साह मोहनराज

होणहार रो हाल

साह मोहनराज

बखत जावसी बीत

साह मोहनराज

जग जाडा जुझार

दुरसा आढा