

विजयदान देथा
जगचावा साहित्यकार। लोक-कथावां नै आखर देवण सारू नोबेल पुरस्कार खातर नामांकित। ‘बिज्जी’ उपनाम सूं साहित्य जगत में ओळखाण।
जगचावा साहित्यकार। लोक-कथावां नै आखर देवण सारू नोबेल पुरस्कार खातर नामांकित। ‘बिज्जी’ उपनाम सूं साहित्य जगत में ओळखाण।
“आपरौ नफौ-नुकसांण सोचण री थां लोगां में समझ व्हैती तौ इण भांत फोड़ा ई क्यूं भुगतता?”
”गिरस्तियां सारू तौ आ दुनिया अर औ जमारौ ई सुरग-नरक है। भरपूर धन अर सोनौ हाथ में व्है तौ औ संसार सुरग सूं ईं वत्तौ है अर तोटायला वास्तै नरक सूं ईं वत्तौ दुखदाई है।”
”गिरस्तियां नै समझावण रौ जिम्मौ तौ संतां रौ है, बापड़ा गिरस्ती संतां नै कांईं समझावै!“
“धन री फटकार सब सूं खोटी व्है।”
“हीरा री कीमत तौ जमीं सूं बारै निकळियां पछै व्है।”