भगवान पर उद्धरण

ईश्वर मानवीय कल्पना

या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

उद्धरण2

quote

“खुदौखुद भगवांन मोटा हिसाबी। जणा-जणा रै सांस रौ पूरौ हिसाब राखै।

बिरखा री छांट-छांट रौ, हवा रै रेसा-रेसा रौ अर धरती रै कण-कण रौ वारै पाखती सही पोतौ।”

विजयदान देथा
quote

“किणी नै कदैई ठाह नीं पड़ै तौ खुदौखुद भगवांन पाप करतौ नीं संकै!”

विजयदान देथा